Book Title: Updesh Tarangini
Author(s): Ratnamandir Gani
Publisher: Harshchandra Bhurabhai Shah

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Page 15
________________ ०००००००००००००००००००००0000000000000000000000000000 सिद्धपदप्राप्त्या श्रीसिद्धक्षेत्रतीर्थमिति प्रसिद्धिर्जाता । यतःउस्सप्पिणीइ पढमं सिद्धो इह पढमचक्किपढमसुओ । पढमजिणस्स य पढमो गणहारी जत्थ पुण्डरीओ ॥४॥ चित्तस्स पुन्निमाए समणाणं पञ्चकोडिपरिवरिओ । निम्मलजसपुण्डरिअं जयउ तयं पुण्डरीअतित्थं ॥ ५॥ अत एव साम्प्रतमपि श्रीशत्रुञ्जयसोपारकवृद्धनगरादिषु नानास्थानागतैः श्रीसद्धेश्चैत्र पूर्णिमायाम्दसवीसतीसचत्तापन्नासापुप्फदामदाणेणं । लहइ चउत्थच्छट्ठट्ठमदसमदुवालसफलाइं ॥ ६॥ इत्यादिसिद्धान्तोक्तविधिना पूजाध्वजप्रदानघृतधारापूर्वकप्रदक्षिणापुण्डरीकोद्यापनादिमहोत्सवा विधीयन्ते । किंच यदधः समवासार्षीदेवो नाभिनरेन्द्रसूः । तेनाऽसौ वन्द्यतां प्राप्तो राजादनमहीरुहः ॥ ७॥ एकोनसप्ततिः कोटाकोटयः पञ्चाशीतिः कोटिलक्षाश्चतुश्चत्वारिंशत्कोटिसहस्राः एतावद्वारान् श्रीयुगादिदेवः | समवासार्षीत् श्रीशत्रुञ्जये इति सारावलीप्रकर्णिके प्रोक्तमस्ति । यथा-नवनवइपुव्वाइं उसहो सित्तुञ्जए। समोसरिओ इत्यादि। वासासु चउम्मासं जत्थ डिआ अजिअसन्तिजिणनाहा । बियसोलधम्मचक्की जयउ तयं पुण्डरिअतित्थं ॥८॥ 1000000000000000000000000००००००

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