Book Title: Updesh Shuddh Sara
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Akhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj

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Page 310
________________ *-*-*-*-*-* श्री उपदेश शुद्ध सार जी होता है। अध्यवसानों का अभाव होने पर राग-द्वेष, मोह रूप आस्रव भाव का अभाव होता है। आस्रव भाव का अभाव होने पर नोकर्म का अभाव होता है, नोकर्म का अभाव होने पर संसार का अभाव होता है। यही ज्ञान की शक्ति है, सच्चा मोक्षमार्ग है। प्रश्न- मोक्ष प्राप्त करने के लिये और क्या करना चाहिये ? इसके समाधान में सद्गुरु आगे गाथा कहते हैं न्यानं दंसन सम्मं, चरनं दुविहंपि सहाव तव जुतं । आराहन भत्तीओ, नंत चतुस्टं च मुक्ति गमनं च ॥ ५८४ ॥ अन्वयार्थ (न्यानं दंसन सम्मं) सम्यक्दर्शन सहित ज्ञान हो (चरनं दुविहंपि सहाव तव जुत्तं) सम्यक्त्वाचरण तथा संयमाचरण यह दोनों प्रकार का चारित्र हो, स्वभाव में लीनता रूप तप हो ( आराहन भत्तीओ) चारों आराधना की आराधना भक्ति करने से (नंत चतुस्टं च मुक्ति गमनं च) अनंत चतुष्ट्य स्वरूप केवलज्ञान प्रगट होता है, इसी से मोक्ष की प्राप्ति होती है। विशेषार्थ आत्मा की अनुभूतियुत दृढ श्रद्धा होने पर सम्यक्दर्शन तथा सम्यक्ज्ञान होता है, फिर सम्यक्त्वाचरण और संयमाचरण चारित्र का पालन करते हुए स्वरूपाचरण रूप तप में लीन होना, चारों आराधना सम्यक्दर्शन ज्ञान चारित्र और तप की आराधना भक्ति करने से अनंत चतुष्टय स्वरूप केवलज्ञान प्रगट होता है। शेष अघातिया कर्मों के क्षय होने पर सिद्ध हो जाता है, यही मोक्ष प्राप्ति का उपाय है । चार आराधनाओं का आराधन ही मोक्ष का उपाय है। जो योगी साधक निश्चय सम्यक् दर्शन, सम्यक्ज्ञान, सम्यक् चारित्र, सम्यक्तप रूप चार आराधनाओं का आराधन, भक्ति करते हैं, शुद्धोपयोग में लीन होते हैं वही मोक्ष परमपद पाते हैं, सिद्ध परमात्मा हो जाते हैं और सादि अनंतकाल तक परमानंद में रहते हैं । - - जो कोई महान पुरुष, परम समाधि रूप सरोवर में अवगाहन कर मन होते हैं, उनके सब प्रदेश समाधि रस में भीग जाते हैं। उन्हीं के चिदानंद अखंड स्वभाव आत्मा का ध्यान स्थिर होता है, वे अनुभव करते हैं कि आत्मा - द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्म से रहित ममल स्वभाव है। जो योगी परम समाधि में रत हैं, उन्हीं पुरुषों के शुद्धात्म स्वभाव के विपरीत अशुद्ध ३१० गाथा ५८४, ५८५ भाव के कारण जो कर्म हैं, वे सब शुद्धात्म परिणाम रूप जल के प्रवाह में बह जाते हैं । निर्विकल्प परमात्म स्वरूप से विपरीत रागादि समस्त विकल्पों का नाश होना उसको परम समाधि कहते हैं। इस परम समाधि से मुनिराज सभी शुभ-अशुभ भावों को छोड़ देते हैं। जो मुनि महादुर्द्धर तपश्चरण करता हुआ और सब शास्त्रों को जानता हुआ भी परम समाधि से रहित है, वह शांत रुप शुद्धात्मा को नहीं देख सकता जब तक समस्त संकल्प-विकल्प जाल से रहित जो परमात्म स्वरूप, उससे विपरीत शुभाशुभ भाव दूर न हों, मिटे नहीं तब तक रागादि विकल्प रहित शुद्ध चित्त में सम्यक्दर्शन ज्ञान चारित्र रूप, शुद्धोपयोग, परम समाधि इस जीव को नहीं हो सकती, ऐसा केवली भगवान कहते हैं। जो योगी परम समाधि में लीन होते हैं, चार आराधनाओं का आराधन करते हैं, उनके ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अंतराय इन चार घातिया कर्मों के नाश होने से अरिहंत पद अनंत चतुष्टय स्वरूप केवलज्ञान प्रगट होता है। पीछे चार अघातिया कर्मों को नाशकर सिद्ध हो जाता है यही मोक्ष होने का उपाय है। प्रश्न- संसारी जीव के लिये मोक्षमार्ग पर चलने के लिये विशेष सहकारी क्या है ? - इसके समाधान में सद्गुरु आगे गाथा कहते हैंउवएस सुद्ध सहियं सुद्धं अवयास ममल न्यानस्य । कम्म मल सुर्य चषिपनं, उवएस सुद्ध मुक्ति गमनं च ।। ५८५ ।। • अन्वयार्थ - ( उवएस सुद्ध सहियं) शुद्ध तत्त्व का उपदेश सुनना और धारण करना (सुद्धं अवयास ममल न्यानस्य ) शुद्ध तत्त्व का अभ्यास, श्रवण, मनन करने से ममल ज्ञान स्वभाव का प्रकाश होता है (कम्म मल सुयं च षिपनं) आत्मज्ञान में स्थिर होने से कर्म मल स्वयं क्षय हो जाते हैं (उवएसं सुद्ध मुक्ति गमनं च) इसलिये शुद्ध तत्त्व का उपदेश ही मुक्ति को प्राप्त करने में सहकारी है । विशेषार्थ- संसारी जीव के लिये मोक्षमार्ग पर चलने के लिये विशेष सहकारी शुद्धतत्त्व, निज शुद्धात्म स्वरूप का उपदेश सुनना और धारण करना *

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