Book Title: Updesh Prasad
Author(s): Jayanandsuri, Raivatvijay
Publisher: Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 454
________________ (1) सद्गुरु द्वारा प्रदत्त बाह्य से दुःखदायक आज्ञा भी अंत में सुखदायक / है,ऐसा जो माने, पाले वही शिष्य। (2) सद्गुरु प्रकाश तो कुगुरु अंधकार। (3) सद्गुरु के नाम का जाप..खपावे भवोभव के पाप... (4) भौतिक सुखार्थ सद्गुरु की सेवा उपासना-आत्मा विडंबना। (5) अध्यात्म में प्रवेश करने के लिए सद्गुरु रुपी द्वार का स्वीकार। (6) सद्गुरु रुपी नाव में बैठकर सद्गुरु की निन्दा रुपी छिद्र करनेवाला समुद्र के तल में जावे इसमें कोई संदेह नहीं (7) सद्गुरु रुपी अंधकार के नाशक सद्गुरु है। (8) सद्गुरु की निश्रा बिना की धर्म क्रिया पाप क्रिया है। (9) कर्म के साथ युद्ध में पीठ बल सद्गुरु का ही उपयोगी। 1(1) कषाय की आग में से बाहर निकलना है जिसे उसे अपना हाथ सद्गुरु को पकडाना होगा। / (2) जो जो क्रिया आत्मोपकारक करनी है.. वह वह क्रिया सद्गुरु की ईच्छानुसार ही। (3) जिनवाणी का श्रवण सद्गुरु के मुख से ही.. 6 (4) सद्गुरु के वचन सुनकर अनादर करने वाला शिष्य अपनी आत्मा का / अनादर करता है। / (5) सद्गुरु के वेश, वाणी और वर्तन में समानता होगी। / (6) सद्गुरु का विनय, विवेक, आत्मोत्थान का मूल है। (7) विकारकी आग बुझानी है तो सद्गुरु की कृपा रुप जल को ग्रहण करो / (8) सद्गुरु की सेवा में प्रमाद, मोहराजा के घर में आनंद। O BHARAT GRAPHICS - Ahmedabad-1 | Ph. : 079-22134176, M : 9925020106

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