Book Title: Unmukta Samvad ki Amogh Drushti Syadwad Author(s): Vishwas Patil Publisher: Z_Jayantsensuri_Abhinandan_Granth_012046.pdf View full book textPage 2
________________ का संबंध विचारों से है किंतु स्याद्वाद उस विचार चिन्तन को जाता है / इस समूचे लोक की हरेक वस्तु के किसी भी एक धर्म अभिव्यक्त करने योग्य अहिंसामयी भाषा शैली की खोज़ करना है, के स्वरूप - प्रतिपादन में सात प्रकार के वचनों का प्रयोग होता है, दार्शनिक मतभेदों और विरोधों का शमन करना है / वादी-प्रतिवादी प्रयोग किया जाता है, प्रयोग किया जा सकता है / यही 'सप्तभंगी' दोनों को न्याय देना है / एक-दूसरे को टकराने से रोकना है। कहलाता है / प्रत्येक पदार्थ अनेकांतात्मक है और उसको प्रतिपादित जटिल से जटिल उलझनों को सुलझाने की क्षमता रखना है / " करनेवाली निर्दोषात्मक भाषा पद्धति स्याद्वाद है / इस भाषामें अनेकांतवाद का आधार है नयवाद ! नय - याने पदार्थ के स्वरूप / निश्चयात्मकता है / कोई भी भंग अनिश्चयात्मक नहीं है। को सापेक्ष दृष्टिकोण से समझना, वस्तुगत अनन्त गुणधर्मों को THE 'स्याद्' का हिंदी पर्याय 'शायद' माना जाता है, जिससे यह समझना नयवाद में पदार्थ के यथार्थ स्वरूप को देखने परखने की अवनि निकलती है कि स्यादाट निश्चित तान का माध्यम नहीं हो सभी दृष्टियों और समस्त दर्शनोंका समावेश हो सकता है। मामला सकता / इसी बात को लेकर शंकराचार्य, शांतरक्षित, रामानुज, हमा स्याद्वाद का आधार - स्तम्भ है - सप्तभंगीवाद ! पदार्थगत राधाकृष्णन्, राहुल सांकृत्यायन, संपूर्णानंद आदि विद्वानोंने इस धर्म सापेक्ष होते हैं अतः उनका विवेचन - विश्लेषण भी सापेक्ष सिद्धान्त की कडी आलोचना की है। श्री. महेन्द्रकुमार न्यायाचार्यजीने होना बिल्कुल ही स्वाभाविक है / स्याद्वाद का सिद्धान्त जहाँ वस्तु अपने 'जैन दर्शन' नामक ग्रंथ में स्याद्वाद की इन आलोचनाओंका के धर्मों का विवेचन - विश्लेषण करता है वहाँ सप्तभंगीवाद अनन्त / जमकर खंडन किया है / महेंद्रकुमारजी 'स्याद' शब्द का अर्थ धर्मात्मक वस्तु के हर धर्म का विवेचन करने की महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया 'शायद' नहीं मानते / उनकी मान्यता है कि "प्राकृत और पालि में प्रस्तुत करता है / सप्तभंगीवाद स्यावाद का विश्लेषण प्रस्तुत 'स्याद्' का 'सिया' रूप होता है | यह वस्तुके सुनिश्चित भेदों के करता है / वस्तु के यथार्थ स्वरूप के विवेचन - विश्लेषण में सात साथ प्रयुक्त होता रहा है / कोई ऐसा शब्द नहीं है जो वस्तु के प्रकार के वचनों का प्रयोग हुआ करता है, प्रयोग हो सकता है, पूर्णरूप का स्पर्श कर सके / हर शब्द एक निश्चित दृष्टिकोण से प्रयोग किए जा सकने की संभावना है | इस दृष्टि से उसके सात प्रयुक्त होता है और अपने विवक्षित धर्म का कथन करता है / इस भंग या प्रकार या पद्धतियां हैं / वे निम्नप्रकार की हैं - तरह, जब शब्द में, स्वभावताः विवक्षानुसार अमुक धर्म के स्यात् अस्ति घट: - कथंचित् घट है। प्रतिपादन करने की शक्ति है, तब यह आवश्यक हो जाता है कि अविवक्षित शेष धर्मों की सूचना के लिए एक 'प्रतीक अवश्य हो, स्यात् नास्ति घट : - कथंचित् घट नहीं है। जो वक्ता और श्रोता को भूलने न दें / 'स्याद्' शब्द यही कार्य स्यात् अस्ति नास्ति घट : - कथंचित् घट है और नहीं है। करता है / वह श्रोता को विवक्षित धर्म का, प्रधानता से, ज्ञान स्यात् अवक्तव्य घट : - कथंचित् घट अवक्तव्य है। कराके भी अविवक्षित धर्मी के अस्तित्व का द्योतन कराता है / 'स्याद्' शब्द जिस धर्म के साथ लगता है, उसकी स्थिति कमजोर स्यात् अस्ति अवक्तव्य घट : - कथंचित् घट है और अवक्तव्य है। नहीं करके, वस्तुमें रहनेवाले तातिपक्षी धर्मकी सूचना देता है।" स्यात् नास्ति अवक्तव्य घट : - कथंचित् घट नहीं है और अवक्तव्य चिन्तन की अहिंसामयी प्रक्रिया का नाम अनेकांत है और उस चिन्तन को अभिव्यक्त करने की शैली कहलाती है स्यावाद ! स्यात् अस्ति नास्ति अवक्तव्य घट : अर्थात् अनेकांतवाद का संबंध मनुष्य के विचार से है, किन्तु, कथंचित् घट है, नहीं है और अवक्तव्य है। स्याद्वाद उस विचार के योग्य अहिंसायुक्त भाषा की खोज करता है / स्याद्वाद के अनुसार सच्चा अहिंसक यह नहीं कहेगा कि 'यह एक प्रश्न का समुचित उत्तर विविध सात पद्धतियोंसे दिया सत्य सिद्धान्त है / ' वह यही कहेगा कि 'स्याद् यह सत्यसिद्धान्त हिंदी, मराठी में आधा दर्जन से अधिक ग्रंथों का लेखन व सम्पादन | हिंदी, मराठी, गुजराती से अनुवाद कार्य भी। सिद्धहस्त लेखक, कुशल प्राध्यापक | साहित्यिक मित्रो के एक वर्ग से निरंतर संपर्क। सम्प्रति - स्नातकोत्तर हिंदी विभागाध्यक्ष, शहादा महाविद्यालय, शहादा. संपर्क : डॉ. विश्वास पाटील, 34 ब. कृष्णाम्बरी, सरस्वती कॉलोनी, शहादा (धुलिया) महाराष्ट्र - 425 401. 'स्याद्वाद' नाम के साथ वाद जुड़ा है जो अंग्रेजी ISM का पर्यायी है / मैं स्वयं स्याद्वाद को वाद नहीं - संवाद मानता हूं / इसमें वाद-विवाद छूट जाते हैं / हितकारी संवाद, समन्वयात्मक अभिव्यक्ति और 'सर्वेषां अविरोधेन / ' दृष्टि का परिचायक यह तत्त्व है / उन्मुक्त संवाद है इसमें ! सबके साथ, सब को लेकर, सबतक पहुंचने की संवादपद्धति है यह स्याद्वाद ! हम अपने कोषोंतक ही सीमित न रहें, ज्ञान की - अभिव्यक्ति की हर संभव जितनी पद्धतियाँ, प्रणालियाँ, सरणियाँ हो सकती हैं उनका सुकरता से स्वागत, सत्कार और स्वीकार करें यही इस दृष्टिकी विशेषता है। डॉ. विश्वास पाटील एम.ए., पी.एच.डी. शेष भाग (पृष्ठ 72 पर) श्रीमद् जयन्तसेनसूरि अभिनन्दन ग्रंथ / विश्लेषण क्षुद्र हृदय के मनुज से, कभी न करना प्रीत / जयन्तसेन निज हित की, यह है सच्ची रीत / / www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use OnlyPage Navigation
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