Book Title: Umaswati aur Unki Parampara
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_6_001689.pdf

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Page 6
________________ सैद्धान्तिक मान्यताओं का निर्धारण और श्वेताम्बर, दिगम्बर और यापनीय जैसे नामकरण पाँचवी शताब्दी में या उसके बाद ही अस्तित्व में आये हैं। उमास्वाति निश्चित ही स्पष्ट सम्प्रदाय भेद और साम्प्रदायिक मान्यताओं के निर्धारण के पूर्व के आचार्य हैं। वे उस संक्रमण काल में हुए हैं, जब श्वेताम्बर, दिगम्बर और यापनीय सम्प्रदाय और उनकी साम्प्रदायिक मान्यताएँ और स्थिर हो रही थीं। अत: वे उस अर्थ में श्वेताम्बर या दिगम्बर नहीं हैं, जिस अर्थ में आज हम इन शब्दों का अर्थ लेते हैं। वे यापनीय भी नहीं है, क्योंकि यापनीय सम्प्रदाय का सर्वप्रथम अभिलेखीय प्रमाण भी विक्रय की छठी शताब्दी के पूर्वार्ध और ईसा की पाँचवीं शती के उत्तरार्ध (ई.सन् 475) का मिलता है। अत: वे श्वेताम्बर और यापनीयों की पूर्वज उत्तर भारत की निर्ग्रन्थ धारा की कोटिकगण की उच्चनागरी शाखा में हुए हैं। उनके सम्बन्ध में इतना मानना ही पर्याप्त है। उन्हें श्वेताम्बर, दिगम्बर या यापनीय सम्प्रदाय से जोड़ना मेरी दृष्टि में उचित नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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