Book Title: Tyagi Sanstha
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Dharma_aur_Samaj_001072.pdf

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Page 11
________________ १३८ एकान्त त्यागकी रक्षा परंतु यहाँपर प्रश्न अभी तक जो कुछ विचार किया गया है वह त्यागको सक्रिय सेवायुक्त अथवा त्यागी संस्थाको विशेष उपयोगी बनानेके लिए । होता है कि जिस त्यागमें प्रत्यक्ष सेवाका समावेश तो नहीं होता, फिर भी वह सच्चा होता है उस एकान्त त्यागकी रक्षा शक्य है या नहीं ? और यदि शक्य है तो किस तरह ? क्यों कि जब सब त्यागियोंके लिए सेवाका विधान अनिवार्य हो जाता है तब हर एक त्यागीके लिए लोकसमुदाय में रहने और उसमें हिलने-मिलने तथा अपनेवर कामकी जिम्मेदारी लेनेकी अवश्यकता हो जाती है। ऐसा होनेपर एकान्त त्याग जैसी वस्तुके लिए आवकाश ही कहाँ रहता है ? यह तो नहीं कहा जा सकता कि ऐसे त्यागकी जरूरत ही क्या है ? क्योंकि यदि किसीमें सचमुचका त्याग होता है और उस त्यागके द्वारा वह व्यक्ति किसी शोधमें लगा होता है, तो क्या उस त्यागके द्वारा किसी महान् परिणाम के आनेकी संभावना है ? उत्तर इतना ही है कि मनुष्य जातिको ऐसे एकान्त त्यागकी भी जरूरत है और इस त्यागकी रक्षा भी शक्य है। ऐसे त्यागको ऊपर के विधानोंसे तथा व्यवस्थाके नियमोंसे कुछ भी बाधा नहीं पहुँचती; क्योंकि संस्थामें रहनेवाले सभ्योंके त्यागमें और ऐसे त्यागमें महान् अंतर होता है । एकान्त त्यागमें ज्ञानप्रेरित उत्तर दायित्व होनेसे उसमें दोष के लिए बिलकुल अवकाश नही है और यदि भूल चूकसे किसी दोषकी संभावना हो भी, तो उसके लिए किसीकी अपेक्षा अधिक सावधानी तो उस त्यागको स्वीकार करनेवालेकी होती है । इसलिए ऐसे एकान्त त्यागको बाह्य नियमनको कुछ जरूरत नहीं रहती । उलटा ऐसा त्याग धारण करनेवाला चाहे वह बुद्ध हो या महावीर, मनुष्य जाति और प्राणीमात्रके कल्याणकी शोधके पीछे निरंतर लगा रहता है । उसको अपनी साघनामें लोकाश्रयकी अपेक्षा जंगलका आश्रय ही अधिक सहायक सिद्ध होता है और साधना समाप्त होते ही वह उसका परिणाम लोगोंके समक्ष रखने के लिए तत्पर होता है । इसलिए जो एकान्त त्यागकी शक्ति रखते हैं उनके लिए तो उनका अन्तरात्मा ही सबसे बड़ा नियन्ता है । इसलिए इस परिवर्तन और इस विधानके नियमोंके कारण ऐसे एकान्त त्याग और उसके परिणामको किसी भी तरह की. बाधा नहीं पहुँचती । साधारण आदमी जो कि एकान्त त्याग और पूर्ण त्यागका Jain Education International धर्म और समाज For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org 1

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