Book Title: Tulsi Prajna 2008 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 2
________________ विकल्प की खोज 'पत्थरेणाहतो कीवो, खिप्पं डसइ पत्थरं। मिगारी उ सरं पप्प, सरुप्पत्तिं व मग्गति॥' दो प्रकार की मनोवृत्तियां होती हैं। एक है कुत्ते की मनोवृत्ति और दूसरी है सिंह की मनोवृत्ति। कुत्ते के सामने ढेला फेंकने पर वह तत्काल उस ढेले को चाटने लग जाता है। सिंह के सामने तीर फैंकने पर अथवा गोली दागने पर वह तीर या गोली की ओर ध्यान नहीं देता, वह तीर फेंकने वाले अथवा गोली दागने वाले की ओर लपकता है और उसे पकड़ने का प्रयत्न करता है। एक है तात्कालिक मनोवृत्ति - वह श्वान वृत्ति है। एक है मूल कारण के खोज की मनोवृत्ति-वह सिंहवृत्ति है। ये दो प्रकार की वृत्तियां हैं। आदमी उपादान पर बहुत कम ध्यान देता है। वह निमित्तों पर अधिक ध्यान देता है। वह उपादान से कम प्रभावित होता है और निमित्तों से ज्यादा प्रभावित होता है। सच्चाई यह है कि उपादन मूल कारण है और परिस्थिति गौण कारण बनती है। परिस्थिति आती है, चली जाती है। प्रतिकूल परिस्थिति आती है और आदमी में क्रोध उभर आता है। इसका अर्थ है कि आदमी परिस्थिति का गुलाम है। वह परिस्थिति से प्रभावित होता है वैसा ही बन जाता है। वह परिणमन का चक्का चलता रहता है, आदमी बदलता रहता है। वह वैसा बन जाता है जैसी परिस्थिति होती है। आदमी स्वयं अपने भाग्य का निर्माता नहीं है। परिस्थिति उसके भाग्य का निर्माण करती है। ध्यान का यह प्रयोजन है कि आदमी इस परिस्थिति की पकड़ से मुक्त हो। वह अपने स्वतन्त्र कर्तव्य को, स्वतन्त्र दायित्व को और स्वतंत्र चेतना को जागृत कर सके । ध्यान का यही मुख्य प्रयोजन है। ध्यान करने वाला व्यक्ति परिस्थिति को पराजित करता है, उससे पराजित नहीं होता। . अनुशास्ता आचार्य महाप्रज्ञ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 ... 100