Book Title: Trishashtishalakapurushcharitammahakavyam Parva 10
Author(s): Hemchandracharya, Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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________________ 256 कलिकालसर्वज्ञश्रीहेमचन्द्राचार्यगुम्फितं शरणस्तवः त्वां त्वत्फलभूतान् सिद्धांस्त्वच्छासनरतान् मुनीन् / त्वच्छासनं च शरणं प्रतिपन्नोऽस्मि भावतः // हे नाथ तीनों भुवन के ! तुम चरण की मैं शरण लूं / कर साधना फल सिद्धि पाए - सिद्ध प्रभु की शरण लूं / मैत्रीमधुर जिनधर्म में रत साधु-पद की शरण लूं / श्री जैनशासन की हृदय के भावसे मैं शरण लूं // क्षमयामि सर्वान् सत्त्वान् सर्वे क्षाम्यन्तु ते मयि / मैत्र्यस्तु तेषु सर्वेषु त्वदेकशरणस्य मे // तेरे पतितपावन चरण की शरण पा कर देव ! मैं / प्राथु क्षमा प्रत्येक प्राणी से परम सद्भाव से / जग के सकल जीवों प्रति अर्पित करूं मैं भी क्षमा / सब मित्र मेरे, मैं सभी का मित्र शुद्ध स्वभाव से / / एकोऽहं नास्ति मे कश्चि-न चाऽहमपि कस्यचित् / त्वदधेिशरणस्थस्य मम दैन्यं न किञ्चन // मैं हूं अकेला, इस जगत में कोइ भी मेरा नहीं / अनुबन्ध मेरा अन्य कोई से तथा कुछ भी नहीं / अशरण-शरण भवजलतरण जिनचरण को आधीन हूं / निजरूप-अनुभवलीन अब मैं हीन नही, ना दीन हूं / यावन्नाऽऽप्नोमि पदवीं परां त्वदनुभावजाम् / तावन्मयि शरण्यत्वं मा मुञ्च शरणं श्रिते // जब तक न पाऊं परम पदवी अचल अक्षय शिवमयी / जिनराज ! जगशिरताज ! तेरी पुनित करुणा से भई / हे शरण-आगत-भक्त-वत्सल ! यशधवल ! तब तक मुझे / आश्रय हमेशा निज-चरण में बख्शना, प्रार्थं तुझे // रचना : श्रीहेमचन्द्राचार्यः अनुवाद : विजयशीलचन्द्रसूरिः