Book Title: Trambavati Tirthmal
Author(s): Bhuvanchandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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________________ [79] बन्यां होय ए स्वाभाविक छे। छतां लगभग चारसो वर्ष पछी बिंबोनी संख्यामां बहु मोटो तफावत पड्यो नथी एम कही शकाय / नं.ती.मांना कठिन शब्दोना अर्थ वं.ती.मां शब्दान्तर्गत आवता हस्व 'इ', 'य'मां परिवर्तन थयुं होय एवा घणा शब्दो छ / जेमके :- व्यंब (बिंब), च्यंतामणि (चिंतामणि), पोल्य (पोलि), ज्यन (जिन) वगेरे / 'इ' उपरांत अन्य स्वरोने स्थाने पण 'य' आवे छे / जेमके :-लष्यमि (लक्ष्मी), च्यालीस (चालीस) वगेरे / शब्दना आदि जकारने बदले 'य' पण वपरायो छे / जेमके :-यन (जिन), यनंद (जिनंद) यगदीस (जगदीस) वगेरे / खंभात इलाकानी ते समयनी गुजराती भाषानी आ रूढि हशे। ऋषभदासनी अन्य कृतिओमां तेमज खंभातना एक वैष्णव कवि शेधजीनी कृतिओमां उच्चारनु आवु वलण जोवा मळे छ / आवो उच्चारभेद धरावता शब्दो ओळखवा सहेला होवाथी शब्दकोशमां नोंध्या नथी / अमीअ अमृत कडली-कई कीरतिन-कीर्तन घटि-घटमां, शरीरमां तृविधि-त्रिविधे (मन-वचन-कायाथी) थूभ-स्तूप (स्मृतिस्तम्भ) पातिग आठमुं-आठमुं पाप (अभिमान) पोढा-प्रौढ, मोटां पूजीम-पूजा बइ-बे भवचा-भवनां मुंहनइ-मने लष्यत-लिखित बडइ-मोटें शरि-माथा पर शवपुरि-शिवपुरमा (मोक्षमां) शत्रपणि-सहस्रपाणि ? सुपरई सारी पेठे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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