Book Title: Tirthankar ke Suvarna kamal Vihar ka Rahasya Author(s): Nandighoshvijay Publisher: Z_Jain_Dharm_Vigyan_ki_Kasoti_par_002549.pdf View full book textPage 2
________________ (Bio-electro- magnetic-energy) कहते हैं । यह शक्ति नहीं देखी जा सकती है किन्तु उसका अनुभव हो सकता है । क्वचित् अतीन्द्रिय शक्तिवान् मनुष्य इसे देख सकते हैं । जहाँ विद्युतशक्ति होती है वहाँ चुंबकत्व अवश्य होता है । ये शक्तियाँ परस्पर एक दूसरे के साथ संयोजित ही है ऐसा प्रतिपादन ई. स. 1833 में माइकल फेराडे ने किया ही है और जहाँ विद्युद्-चुंबकीय शक्ति है वहाँ विद्युद्-चुंबकीय क्षेत्र भी होता है । ___ भले ही हम जैविक विद्युद-चुंबकीय क्षेत्र को नहीं देख सकते हैं, किन्तु आज अत्याधुनिक वैज्ञानिक साधन द्वारा किलियन फोटोग्राफी से इसके| रंगीन फोटोग्राफ्स लिये जा सकते हैं । इतना ही नहीं, उनके रंग के आधार पर और उनकी अपूर्णता के परीक्षण द्वारा रोग का निदान भी किया जाता है। प्राचीन काल के महापुरुषों ने यही जैविक विद्युचुंबकीयक्षेत्र को आभामंडल (aura) नाम दिया है | मनुष्य के आभामंडल के बारे में निष्णातों का अभिप्राय है कि कोई भी रोग शरीर में प्रवेश करने के पूर्व तीन माह पहले आभामंडल में उसी रोग का असर पाया जाता है । अतः किलियन फोटोग्राफी द्वारा लिये गये| आभामंडल के फोटोग्राफ्स के परीक्षण द्वारा रोग को जानकर उसके उपचार करके रोग को शरीर में प्रवेश करता रोका जा सकता है, और इसी प्रकार मनुष्य निरोगी हो सकता है । हालाँकि, उस समय भी रोग सूक्ष्म रूप में तो शरीर में प्रवेश पा चुका होता है । केवल स्थूल रूप में उसका आविर्भाव नहीं पाया जाता है । संक्षेप में, जैविक विद्युचुंबकीय शक्ति विज्ञान सिद्ध वास्तविकता है| उसमें कोई शंका नहीं है । इस शक्ति का उत्सर्जन प्रत्येक सजीव पदार्थ में से होता है किन्तु उसके प्रकार व प्रमाण का आधार उसी पदार्थ की शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक उत्क्रान्ति पर है । साथ-साथ उसी सजीव पदार्थ की आत्मा को लगे हुये शुभ-अशुभ कर्म व आत्मा की शक्ति को आवृत्त करने वाले कर्म कितनी मात्रा में दूर हुये है ? उस पर भी उसका आधार है । ये सभी परिबल केवलज्ञानी तीर्थंकर परमात्मा में सब से ज्यादा होते हैं । अतः उनकी जैविक विद्युद्-चुंबकीय शक्ति उत्तमोत्तम प्रकार की व उच्चतम मात्रा में होती है । जैन दार्शनिक परंपरा अनुसार किसी भी जीव को मन, वचन व शरीर, 34 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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