Book Title: Tirthankar ke Suvarna kamal Vihar ka Rahasya Author(s): Nandighoshvijay Publisher: Z_Jain_Dharm_Vigyan_ki_Kasoti_par_002549.pdf View full book textPage 5
________________ या प्रभु की उच्चतम शक्ति का लोगों को ज्यादा लाभ मिले उसी कारण से तीर्थकर परमात्मा की उच्च जैविक विद्युदचुंबकीय ऊर्जा को पृथ्वी में उतारने लिये देव सुवर्ण कमल की रचना करते हैं और प्रभु उस पर पैर स्थापन करके विहार करते हैं / सामान्य तौर से हम देखते हैं कि गगनचुंबी मकान पर तांबे की तार लगायी जाती है जिसकी दूसरी छोर जमीन में गाडी होती है / उसका कारण यह है कि वर्षा ऋतु में वातावरण में भारी दबावयुक्त बिजली को उसी तार द्वारा जमीन में उतारी जाती है / इससे आसपास में अन्यत्र कहीं भी बिजली पडती नहीं है / बस, इसी सिद्धांत पर देव प्रभु के लिये सुवर्ण कमल की रचना करते हैं ऐसा मेरा अपना मंतव्य है क्योंकि सुवर्ण बिजली के लिये अत्यंत सूक्ष्मग्राही (sensitive) पदार्थ है और तांवे से भी वह अतिसुवाहक (most conductive) है / अतः सुवर्ण कमल द्वारा प्रभु की यही शक्ति जमीन में उतर जाती है जिसके प्रभाव से प्रभु जहाँ भी विहार करते हैं वहाँ प्रभु के शरीर से निश्चित योजन के विस्तार में तथा प्रभु विहार करके अन्यत्र जाने के बाद भी उस स्थान में अर्थात् प्रभु ने जहाँ भी विहार किया हो वहाँ छः महिने तक किसी भी प्रकार के रोग. दुष्काल, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, मच्छर, मक्खी, पतंग, तीड इत्यादि क्षुद्र जंतुओं के उपद्रव या ऐसी कुदरती आपत्तियाँ नहीं आती है / इतना ही नहीं, उस क्षेत्र में स्थित मनुष्य व प्राणीओं की अशुभ वृत्तियाँ भी दूर हो जाती है / अतएव आज से 2500 वर्ष पूर्व की श्रमण भगवान श्री महावीरस्वामी की जो विहारभूमि थी वह मगध अर्थात आज का बिहार व उनकी कल्याणक भूमियाँ, खास तौर से केवलज्ञान कल्याणक की भूमि ऋजुवालिका नदी का तट व निर्वाण कल्याणक की भूमि - पावापुरी का वातावरण आज भी पवित्र जीवों को अलौकिक दिव्य अनुभूति कराता है / / इस प्रकार प्रभु निरंतर समग्र सृष्टि पर उपकार करते रहते हैं / यह है प्रभु ने पूर्व भव में भावित " सवि जीव करूं शासनरसी " की! उत्कृष्ट भावना का उत्कृष्ट परिणाम / 37 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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