Book Title: Tirthankar Mukti Path Ka Prastota Author(s): Amarmuni Publisher: Z_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf View full book textPage 9
________________ जन्म ज्येष्ठ कृष्णा अष्टमी और निर्वाण ज्येष्ठ कृष्णा नवमी को हुआ । निर्वाण-भूमि सम्मेतशिखर है। २१ नमिनाथ : भगवान् नमिनाथ इक्कीसवें तीर्थंकर थे। इनकी जन्मभूमि मिथिला नगरी थी। कुछ प्राचार्य मथुरा नगरी बताते हैं । पिता राजा विजयसेन और माता वप्रादेवी थीं। आपका जन्म श्रावण कृष्णा अष्टमी और निर्वाण वैशाख कृष्णा दशमी को हुआ। निर्वाणभूमि सम्मेत-शिखर है। २२ नेमिनाथ : भगवान् नेमिनाथ बाइसवें तीर्थंकर थे। इनका दूसरा नाम अरिष्टनेमि भी था। आपकी जन्मभूमि आगरा के पास शौरीपुर नगर है। पिता यदुवंश के राजा समुद्रविजय और माता शिवादेवी थी। आपका जन्म श्रावणशुक्ला पंचमी और निर्वाण आषाढशुक्ला अष्टमी को हुा । निर्वाण-भूमि सौराष्ट्र में गिरनार पर्वत है, जिसे पुराने युग में रेवतगिरि भी कहते थे। भगवान् अरिष्टनेमि कर्मयोगी श्रीकृष्णचन्द्र के ताऊ के पुत्र भाई थे। श्रीकृष्ण ने भगवान् नेमिनाथ से धर्मोपदेश सुना था। इनका विवाह-सम्बन्ध महाराजा उग्रसेन की सुपुत्री राजीमती से निश्चित हुअा था, किन्तु विवाह के अवसर पर बरातियों के भोजन के लिए पशु-वध होता देख कर इनका हृदय करुणा से द्रवित हो उठा, फलतः इन्होंने विवाह नहीं किया और वापस लौट कर मुनि बन गए। २३ पार्श्वनाथ : भगवान् पार्श्वनाथ तेईसवें तीर्थंकर थे। आपकी जन्मभूमि वाराणसी (बनारस') है। पिता राजा अश्वसेन और माता वामादेवी थीं। आपका जन्म पौष कृष्णा दशमी और निर्वाण श्रावण शुक्ला अष्टमी को हुआ । निर्वाण-भूमि सम्मेतशिखर है। आपने कमठ तपस्वी को बोध दिया था और उसकी धूनी में से जलते हुए नाग को बचाया था। २४ महावीर : भगवान् महावीर चौबीसवें तीर्थंकर थे। उनकी जन्मभूमि वैशाली (क्षत्रिय कुण्ड -सम्प्रति वासुकुण्ड) है। आपके पिता राजा सिद्धार्थ और माता त्रिशलादेवी थीं। आपका जन्म चैत्रशुक्ला त्रयोदशी और निर्वाण कार्तिक कृष्णा पंदरस (दिवाली) को हुप्रा । निर्वाणभूमि पावापुरी है। भगवान् महावीर बड़े ही उत्कृष्ट त्यागी पुरुष थे। भारतवर्ष में सर्वत्र फैले हुए हिंसामय यज्ञों का निषेध करके दया और प्रेम का प्रचार किया। बौद्ध-साहित्य में भी उनके जीवन से सम्बन्धित अनेक उल्लेख मिलते हैं। तथागत महात्मा बुद्ध महाश्रमण महावीर के समकालीन थे। वर्तमान में श्रमण भगवान् महावीर का ही शासन चल रहा है। स्वयं-सम्बद्ध :: तीर्थंकर भगवान् स्वयं-सम्बुद्ध कहलाते हैं। स्वयं-सम्बद्ध का अर्थ है--अपने-आप प्रबुद्ध होने वाले, बोध पाने वाले, जगने वाले । हजारों लोग ऐसे हैं, जो जगाने पर भी नहीं जगते। उनकी अज्ञान निद्रा अत्यन्त गहरी होती है। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो स्वयं तो नहीं जग सकते, परन्तु दूसरों के द्वारा जगाए जाने पर अवश्य जग उठते हैं। यह श्रेणी साधारण साधकों की है। तीसरी श्रेणी उन पुरुषों की है, जो स्वयमेव समय पर जाग जाते हैं, मोहमाया की निद्रा त्याग देते हैं और मोह-निद्रा में प्रसुप्त विश्व को भी अपनी एक आवाज से जगा देते हैं। हमारे तीर्थकर इसी श्रेणी के महापुरुष हैं। तीर्थकर देव किसी के बताये हुए पूर्व निर्धारित संयम-साधना पथ पर नहीं चलते। वे अपने और विश्व के तीर्थकर : मुक्ति-पथ का प्रस्तोता ३५ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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