Book Title: Tirthankar Mukti Path Ka Prastota Author(s): Amarmuni Publisher: Z_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf View full book textPage 8
________________ १४ अनन्तनाथ : भगवान् अनन्तनाथ चौदहवें तीर्थंकर थे। उनकी जन्म-भूमि अयोध्या नगरी थी। पिता राजा सिंहसेन और माता सुयशा थीं। आपका जन्म वैशाख कृष्णा तृतीया को और निर्वाण चैत्र शुक्ला पंचमी को हुआ था। निर्वाण-भूमि सम्मेतशिखर है। १५ धर्मनाथ : भगवान् धर्मनाथ पन्द्रहवें तीर्थंकर थे। उनकी जन्मभूमि रत्नपुर नामक नगरी थी। पिता भानुराजा और माता सुव्रता थीं। आपका जन्म माघ शुक्ला तृतीया को और निर्वाण ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी को हुआ था। निर्वाण-भूमि सम्मेतशिखर है। १६ शान्तिनाथ : भगवान् शान्तिनाथ सोलहवें तीर्थंकर थे। आपका जन्म हस्तिनागपुर, आज के हथिनापुर के राजा विश्वसेन की अचिरा रानी से हुआ। आपका जन्म ज्येष्ठकृष्णा त्रयोदशी को और निर्वाण भी इसी तिथि को हुआ। निर्वाण-भूमि सम्मेतशिखर है। भगवान शान्तिनाथ भारत के १२ चक्रवतियों में पंचम चक्रवर्ती राजा भी थे। ऐसा कहा जाता है कि इनके जन्म लेने पर देश में फैली हुई मगी रोग की महामारी शान्त हो गई थी, इसलिए मातापिता ने इनका नाम शान्तिनाथ रखा था। ये बहुत ही दयालु प्रकृति के थे। ऐसी कथा मिलती है कि पहले जन्म में जबकि वे मेघरथ राजा थे, कबूतर की रक्षा के लिए उसके बदले में बाज को अपने शरीर का मांस काट कर दे दिया था। १७ कुन्थुनाथ : भगवान् कुन्थुनाथ सतरहवें तीर्थंकर थे। उनका जन्म-स्थान हस्तिनागपुर है। पिता सूरराजा और माता श्रीदेवी थीं। आपका जन्म वैशाख कृष्णा चतुर्दशी और निर्वाण वैशाख कृष्णा प्रतिपदा (एकम) को हुआ था। निर्वाण-भूमि सम्मेतशिखर है। भगवान् कुन्थुनाथ भारत के छठे चक्रवर्ती राजा भी थे। १८ अरनाथ: ___भगवान् अरनाथ अठारहवें तीर्थकर थे। उनका जन्म-स्थान हस्तिनागपुर है, पिता राजा सुदर्शन और माता श्रीदेवी थीं। आपका जन्म मार्गशीर्ष शुक्ला दशमी और निर्वाण भी मार्गशीर्ष शुक्ला दशमी को ही हुआ था। निर्वाण-भूमि सम्मेतशिखर है। भगवान् अरनाथ भारत के सातवें चक्रवर्ती राजा भी थे। १६ मल्लिनाथ : ___ भगवान् मल्लिनाथ उन्नीसवें तीर्थंकर थे। उनका जन्म-स्थान विदेहदेश की राजधानी मिथिला नगरी है। पिता कुम्भराजा और माता प्रभावतीदेवी थीं। आपका जन्म मार्गशीर्षशुक्ला एकादशी को और निर्वाण फाल्गुन शुक्ला द्वादशी को सम्मेतशिखर पर हुआ। ये वर्तमानकाल के चौबीस तीर्थङ्करों में स्त्री-तीर्थङ्कर थे। उन्होंने विवाह नहीं किया, प्राजन्म ब्रह्मचारी रहे। स्त्री शरीर होते हुए भी उन्होंने बहुत व्यापक भ्रमण कर धर्म-प्रचार किया। चालीस हजार मुनि और पचपन हजार साध्वियाँ इनके शिष्य हुए। तथा इनके एक लाख उन्यासी हजार श्रावक और तीन लाख सत्तर हजार श्राविकाएँ थीं। २० मुनिसुव्रतनाथ : भगवान् मुनिसुव्रतनाथ बीसवें तीर्थंकर थे। उनकी जन्मभूमि मगध देश में राजगृह नगरी थी। पिता हरिवंश-कुलोत्पन्न राजा सुमित्र और माता पद्मावतीदेवी थीं। आपका पन्ना समिक्खए धम्म www.jainelibrary.org Jain Education Interational For Private & Personal Use OnlyPage Navigation
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