Book Title: Tin Ardhamagadhi Shabdo ki Katha Author(s): H C Bhayani Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf View full book textPage 1
________________ डा. हरिवल्लभ चुन्नीलाल भायाणी एम० ए०, पी-एच० डी०, प्राध्यापक भारतीय विद्याभवन, बम्बई तीन अर्धमागधी शब्दों की कथा जैनधर्म और दर्शन के मूल-स्रोत होने के कारण तो जैन आगम-ग्रंथ अमूल्य हैं ही. इसके अतिरिक्त केवल ऐतिहासिक दृष्टि से भी आगमगत सामग्री का अनेक विध महत्त्व सर्व-विदित है. भारतीय आर्यभाषाओं के क्रम-विकास के अध्ययन के लिए आगमिक भाषा एक रत्न-भण्डार सी है. इस दृष्टि से अर्धमागधी को लेकर बहुत-से विद्वानों ने विवरणात्मक, तुलनात्मक और ऐसिहासिक अनुसन्धान किया है. मगर बहुत कुछ कार्य अब भी अनुसंधायकों की प्रतीक्षा कर रहा है. विशेष करके अनेक आगमिक शब्दों के सूक्ष्म अर्थ-लेश के विषय में और उनके अर्वाचीन हिन्दी, गुजराती आदि भाषाओं के शब्दों से संबन्ध के विषय में गवेषणा के लिए विस्तृत अवकाश है. इस विषय का महत्त्व जितना अर्वाचीन भाषाओं के इतिहास की दृष्टि से है उतना ही अर्धमागधी को रसिक और परिचित बनाने की दृष्टि से भी है. यहाँ पर तीन अर्धमागधी शब्दों की इस तौर पर चर्चा करने का इरादा है. ये शब्द हैं—पिटुंडी—'आटे की लोई, उत्तुप्पिय–'चुपडा हुआ, 'चिकना' और पयण —'कडाही. १ पिठ्ठडी 'नायाधम्मकहा अङ्ग के तीसरे अध्ययन 'अण्डक' में मोरनी के अंडों के वर्णन में अंडों को पुष्ट, निष्पन्न, व्रणरहित, अक्षत और 'पिठ्ठडीपंडुर' कहा गया है. इस विशेषण में 'पिटुंडी' का अर्थ अभयदेवसूरि ने इस प्रकार किया है'पिष्टस्य-शालिलोहस्य-उंडी पिण्डी' फलस्वरूप उक्त विशेषण का अर्थ होगा 'चावल के आटे के पिण्ड जैसा श्वेत'. 'पिटुंडी' शब्द पिट्ठ+ उंडी से बना है. 'पिट्ठ' =सं० पिष्ट'. 'पिष्ट' का मूल अर्थ है 'पीसा हुआ,' बाद में उसका अर्थ हुआ 'चूर्ण' और फिर 'अन्न का चूर्ण'. मराठी 'पीठ' (आटा), हिन्दी 'पीठी', गुजराती पीठी' आदि का सम्बन्ध इस 'पिष्ट'-'पिट्ठ' के साथ है. 'नाज के चूर्ण' इस अर्थ वाले 'आटा' 'लोट' (गुजराती) और 'पीठ' इन तीनों शब्दों का मूल अर्थ केवल 'चूर्ण' था. इनके प्राकृत रूप थे-'अट्ट', 'लोट्ट' और 'पिट्ठ'. शेष 'उंडी' का अर्थ है 'पिण्डिका' या 'छोटा पिण्ड'. जैसे यहाँ पर 'पिट्टेड' में 'उड' का प्रयोग 'पिट्ठ' के साथ हुआ है वैसे ओघनियुक्तिभाष्य में 'उंड' का विस्तारित रूप 'उंडग' 'मंस' के साथ (मंसउंडग) और विपाकश्रत में हियय' (हृदय) के साथ 'हिययउंडय' हुआ है. पिण्डनियुक्ति में 'मसुंडग' रूप मिलता है. इसके अतिरिक्त नायाधम्मकहा के पंद्रहवें अध्ययन में 'भिच्छंड' शब्द 'भिखारी' अर्थ में प्रयुक्त है. इस में 'भिक्षा+उंड' ऐसे अवयव हैं और इनसे 'भिक्षा-पिण्ड पर निर्वाह करने वाला' ऐसा अर्थ प्रतीत होता है. 'भिच्छंड' के स्थान पर 'भिक्खंड' और 'भिक्खोंड' भी मिलते हैं. संस्कृत में 'उण्डुक' (शरीर का एक अवयव) और 'उण्डेरक' (पिष्टपिण्ड) के प्रयोग मिलते हैं. अर्वाचीन भाषाओं में मराठी ‘उंडा' (-लोई) और उंडी (-भात का पिण्ड), गुजराती 'ऊंडल'(-'गुल्म-रोग') तथा सिंहली 'उण्डिय' (— गेंद) में एवं हिन्दी ‘मसूड़ा' (–सं० मांसोण्डक, प्रा० मंसुंडय) में 'उंड' शब्द सुरक्षित है. टर्नर के अनुसार "उंड' मूल में द्राविड़ी शब्द है. तमिल में 'उण्ट' मलयालम् में 'उण्डा', और कन्नड़ में 'उण्डे' ये शब्द 'गेंद' या 'गोल पिण्ड' के अर्थ में प्रचलित हैं. इन सब से 'पिटुंडी' का (चावल के) 'आटे की लोई' यह अर्थ समर्थित होता है. Jain Education Internal Soose Only Www.jainelibrary.orgPage Navigation
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