Book Title: Thodi Laghu Krutiya Author(s): Vinaysagar Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 8
________________ अनुसन्धान ४२ आगमइ ए जम्बूय वयरकुमार तेह जो मलि एह मुनिवरूए । गच्छपति श्री सुमतिसाधुसूरिन्द सीसरयण मंगलकरूं ए ॥१०॥ जां सात सायर ससि दिवायर मेरु अविचल मन्दरो । जो धरइ धरणि बीय भुअबलि सेसफणवय मणिधरो । तां लगइ प्रतपउ इणि तपागच्छि पवर एह यतीसरो । श्री संघ मंगल करण सहगुरु अनन्तहंस सुहंकरो ॥११॥ इति महोपाध्याय श्रीअनन्तहंसगणिपादानां स्वाध्यायः ॥६॥ कृतः कनकमाणिक्यगणिभिः ॥ श्री स्तम्भतीर्थनगरे । ॥ श्री ॥ श्री ॥ श्री ॥ श्री || श्री ॥ श्री ॥ श्री || श्री ।। श्री भीमकवि रचित श्रीविजयदानसूरि भास आचार्य पुरन्दर श्री विजयदानसूरि, श्री आनन्दविमलसूरि के पट्टधर थे । तपागच्छ पट्टावली के अनुसार विजयदानसूरि ५७वें पट्टधर थे । इनका जन्म १५५३ जामला, दीक्षा १५६२, आचार्य पद १५८७ और १६२२ वटपल्ली में इनका स्वर्गवास हुआ था । मन्त्री गलराज, गान्धारीय सा. रामजी, अहमदावादीय श्री कुंवरजी आदि इनके प्रमुख भक्त थे । महातपस्वी थे । इनका प्रभाव खम्भात, अहमदाबाद, पाटण, महसाणा और गान्धारबन्दर इत्यादि स्थलों पर विशेष था । इनके द्वारा प्रतिष्ठित शताधिक मूर्तियाँ प्राप्त हैं । इनके सम्बन्ध में कवि भीमजी रचित स्वाध्याय का एक स्फुट पत्र प्राप्त है । जिसका माप २६ x ११ x ३ से.मी. है, पत्र १, कुल पंक्ति १५, प्रति अक्षर ५२ हैं । लेखन १७वीं शताब्दी है । भास की भाषा गुर्जर प्रधान है। कहीं-कहीं पर अपभ्रंश भाषा का प्रभाव की दृष्टिगत होता है । इस पत्र के अन्त में श्री विजयहीरसूरि से सम्बन्धित दो सज्झायें दी गई हैं । इस कृति में विजयदानसूरि के सम्बन्ध में एक नवीन ज्ञातव्य वृत्त प्राप्त होता है । जिसका यहाँ उल्लेख आवश्यक है : विक्रम संवत् १६१२ में आचार्यश्री नटपद्र (संभवत: नडियाद) नगर पधारे । संघ ने स्वागत किया । वहाँ का सम्यक्त्वधारी श्रावक संघ बहुत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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