Book Title: Thodi Laghu Krutiya
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 11
________________ डिसेम्बर २००७ ४९ (४) श्री हीरविजयसूरि सज्झाय 'हीरला' के नाम से समाज प्रसिद्ध जगद्गुरु श्रीहीरविजयसूरि के नाम से कौन अपरिचित होगा ? तपागच्छ पट्टावली के अनुसार ये ५८ वें पट्टधर थे और श्री विजयदानसूरि के शिष्य थे। इनका जन्म संवत् १५८३ प्रह्लादनपुर में हुआ था । पिता का नाम कुंरा और माता का नाम नाथी था । संवत् १५९६ पत्तननगर में दीक्षा, १६०७ नारदपुरी (नाडोल) में पण्डित पद, १६०८ में पट्टधर प्राप्त हुआ था । संवत् १६५२ में इनका स्वर्गवास हुआ था । सम्राट अकबर प्रतिबोधक आचार्य के रूप में इनका नाम विश्व विख्यात है । जगद्गुरु पद सम्राट अकबर ने ही प्रदान किया था । इनका विस्तृत जीवन चरित्र जाननें के लिए पद्मसागर रचित जगदुरु काव्य, शान्तिचन्द्रोपाध्याय रचित कृपारस कोष, श्री देवविमल रचित हीरसौभाग्य काव्य, कविवर ऋषभदास रचित हीरविजयसूरिरास, श्री विद्याविजयजी रचित 'सूरीश्वर अने सम्राट्' द्रष्टव्य है । इन दोनों सज्झायों का स्फुट पत्र प्राप्त है, जिसकी माप २६ x ११ x ३ से.मी. है, पत्र १, कुल पंक्ति १३, प्रति अक्षर ५२ हैं । लेखन १७ वीं शताब्दी है । भास की भाषा गुर्जरप्रधान है । ये दोनों सज्झायें श्री विजयदानसूरि स्वाध्याय के साथ ही लिखी हुई हैं। प्रथम सज्झाय का कर्ता अज्ञात है । पाँच गाथाओं की इस सज्झाय में कर्ता ने अपने नाम का उल्लेख नहीं किया है । केवल हीरविजयसूरि के गुणों का वर्णन है । प्रारम्भ में शान्तिनाथ सरस्वती देवी को प्रणाम कर श्री हीरविजयसूरि की स्तुति करूंगा, ऐसी कवि प्रतिज्ञा करता है । श्री आनन्दविमलसूरि के पट्टधर और श्री विजयदानसूरि के ये शिष्य थे । समता रस के भण्डार थे । भविक जीवों के तारणहार थे । नर-नारी वृन्द उनके चरणों में झुकता था । देदीप्यमान देहकान्ति थी । मधर स्वर में व्याख्यान देते थे। अनेक मनुष्यों, देवों और देवेन्द्रों के प्रतिबोधक थे । चौदह विद्या के निधान थे। ऐसे श्री विजयदानसूरि के शिष्य करोड़ों वर्षों तक जैन शासन का उद्योत करें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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