Book Title: Terapanthi Jain Vyakaran Sahitya
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 11
________________ तेरापंथी जैन व्याकरण साहित्य ३४१ त कुशलपथः यह सूत्र है। इनके सम्बन्ध में कोई विधान नहीं है। सर्वधुर शब्द से इव प्रत्यय होता है । विध्यति अर्थ में य प्रत्यय होता है, पर वह वेधन धनुष से नहीं होना चाहिए। प्रतिजन आदि शब्दों से खञ् प्रत्यय होता है। शक्ति शब्द से नहीं होता। वर्षा और दीर्घ शब्द से नहीं होता। ७२. सप्तम्यर्थ में कुशल अर्थ से यथा विहित प्रत्यय होते हैं--प्रत्यय करने वाला सूत्र है-"कुशले"। ७३. त्यद् आदि पंचम्यन्त शब्दों से प्रभवति अर्थ में मयट् होता है। द्वितीयान्त ज्योतिष् शब्द से अधिकृत्य कृते ग्रन्थे इस अर्थ में अण् प्रत्यय और वृद्धि का अभाव निपातन से होता है। ७४. बहन अर्थ में वामादि पूर्वक धुर् शब्द से ईन प्रत्यय होता है-वामधुरीण सर्वधुरीण: आदि । ७५. द्वितीयान्त से विध्यति अर्थ में प्रत्यय होता है । पादौ विध्यन्ति पद्या, शर्करा। ७६. सर्वजन शब्द से ण्य और ईन तथा प्रतिजन आदि शब्दों से ईनञ् प्रत्यय होता है। ७७. नञ् सु और दुर् से परे शक्ति हलि और सक्थि शब्द हो तो बहुब्रीहि में समा सान्त अ प्रत्यय विकल्प से होता है। ७८. सर्व, अंशवाची शब्द, संख्यात, वर्षा, पुण्य, दीर्घ, संख्या और अव्यय से परे रात्रि शब्द को समासान्त अ प्रत्यय होता है। ७६. सुप्रातः सुश्वः सुदिवः, शारिकुक्ष: चतुरश्रः, एणीपदः, अजपदः प्रोष्ठपद: और भद्रपदः ये शब्द उ प्रत्ययान्त निपातन से सिद्ध होते हैं। ८०. मन्द, अल्प और नजादि शब्दों से परे युधा शब्द को समासान्त अस् प्रत्यय होता है। ८१. तमादि प्रत्ययों से पहले तक भृश, आभीक्ष्ण्य, सातत्य और वीप्सा अर्थ में वर्तमान पद पर वाक्य द्वित्व होता है । ८२. अनेक पुद्राथों में भेदपूर्वक इयत्ता का ज्ञान हो उसे नानावधारण कहते हैं। नानावधारण अर्थ में वर्तमान शब्द द्वित्व होता है-"अस्मान् कार्षापणात् मापं माष देहि" यहाँ माषं-माष द्वित्व हुआ है। ८३. दूसरों की अपेक्षा प्रकर्ष द्योतित हो तो पूर्व और प्रथम शब्द द्वित्व होते हैं-पूर्व पूर्व पुष्यन्ति, प्रथम-प्रथम पच्यन्ते । ८४. समान व्यक्तियों के बारे में प्रश्न हो तथा उसका सम्बन्ध भाववाची स्त्रीलिंग शब्दों से हो उतर, उत्तम प्रत्ययान्त शब्द रूप द्वित्व होते हैं-उभौ इमो आढ्यौ कतरा-कतरा अनयोः आढ्यता? भद्रपदः शब्द नहीं है। यह नियम नहीं है। तमादि प्रत्ययों से पहले का विधान नहीं है। इन नियमों के सम्बन्ध में कोई उल्लेख प्राप्त नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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