Book Title: Terapanthi Jain Vyakaran Sahitya
Author(s): Kanakprabhashreeji
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 10
________________ ३४० कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड -.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-..................................... सं और स्वयं शब्दों से नहीं होता। पा धातु से नहीं होता। अन्तर्घण शब्द नहीं है। ज्ञप्ति शब्द नहीं है। युव संज्ञक शब्दों की कुत्सा अर्थ में गोत्र संज्ञा और वृद्ध संज्ञक शब्दों की पूजा अर्थ में युवसंज्ञा होती है। गार्यो जाल्मः-गाायणः । एङ् प्राचां देशे यह एक ही सूत्र है । इदम् अर्थ में अणपवादक प्रत्ययों के स्थान में भी य का निषेध नहीं है। ५८. शं, स, स्वयं, वि और प्र इनसे परे भू धातु को डु प्रत्यय होता है। ५६. नी, पा, दाप आदि धातुओं से साधन अर्थ में ट् प्रत्यय होता है। ६०. अन्तर्धत और अन्तर्धण हन् धातु से अल् प्रत्यय होने पर देश अर्थ में निपातन से सिद्ध होते हैं। ६१. माति, हेति, यूति, जूति, ज्ञप्ति और कीर्ति कर्ता के अतिरिक्त अन्य कारकों और भाव में निपातन से सिद्ध होते हैं। स्त्रीलिंग को छोड़कर युव संज्ञक अपत्य की कुत्सा अर्थ में और पौत्रादि अपत्य की अर्चा अर्थ में पुव संज्ञा विकल्प से होती है। इससे गार्यः और गाायण दोनों रूप में बनते हैं। ६३. एदोद्देश एवेयादौ, प्रागदेशे ये दो सूत्र हैं । ६४. दिति, अदिति, आदिव्य, यम तथा जिनके उत्तरपद में पति हो उन शब्दों से इदम् अर्थ को छोड़कर प्राग दीव्यतीत अर्थ में और अपत्यादि अर्थ में अणपबादक प्रत्यय के विषय में तथा अण प्रत्यय के स्थान में ब प्रत्यय होता है । एवं इदम् अर्थ में अण के स्थान में ही ज्य प्रत्यय होता है। ६५. विश्रवस् शब्द से अपत्य अर्थ में अण प्रत्यय और उसके योग में अन्त को णकार आदेश होता है और णकार के योग में विश् का लोप विकल्प से होता है-वैश्रवणः, रावणः । ६६. अग्निशमन् शब्द से वृषगण गौत्र और पौत्रादि अपत्य अर्थ में तथा कृष्ण और रण शब्द से ब्राह्मण और वाशिष्ठ गौत्र में आयनण प्रत्यय होता है । ६७. दगु, कोशल आदि शब्दों से आयनिञ् प्रत्यय और उसे युट् का आगम होता है---दागव्यायानि, कौशल्यायनि । ६८. गोधा शब्द से दुष्ट अपत्य अर्थ में एरण और आरण प्रत्यय होते हैं। ६६. अन धेनु शब्द से समूह अर्थ में इकण् प्रत्यय होता है। ७०. पुरुष शब्द से कृत, हित, वध, विकार और समूह अर्थ में एय प्रत्यय होता है। ७१. प्राणी विशिष्ट शेष अर्थ में रञ्जु शब्द से षायनण् प्रत्यय विकल्प से होता है-राकवायणः, राकवः । इस सम्बन्ध में कोई विधान नहीं है । ऐसा विधान नहीं है । दगु शब्द से नहीं होता। दुष्ट अर्थ नहीं है। न को नहीं छोड़ा है। यह विधान नहीं है। अमनुष्य वाची रङ्कु शब्द से यह विधान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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