Book Title: Terapanth ke Mahan Shravak Author(s): Vijaymuni Shastri Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 9
________________ तेरापंथ के महान् श्रावक 107. ................................................................. ..... और अपने को तेरापंथी कहना प्रारम्भ किया। टीकमजी ज्ञान-पिपासु थे। इनके पास ग्रन्थों का अच्छा संग्रह था / निरन्तर जब भी समय मिलता कुछ न कुछ स्वाध्याय करते रहते थे। स्वामीजी के अनेकों ग्रन्थ इन्होंने कण्ठस्थ किये थे। याद करके अनेक ग्रन्थों को लिपिबद्ध भी किया था। उसके बाद उन ग्रन्थों की अन्य प्रतिलिपियाँ समय-समय पर दूसरों के द्वारा होती रहीं / अन्त समय में इन्होंने चौबिहार संथारा किया। तेरापंथ एक प्रकाश पुंज के रूप में इस धरती पर अवतरित हुआ। इसके आलोक में लाखों व्यक्तियों ने अपना मार्ग प्रशस्त किया है। तेरापंथ में आज तक अनेक श्रावक पैदा हुए हैं। जिन्होंने न केवल धर्मसंघ की ही सेवा की अपितु अपने नैतिक और सदाचारी जीवन से समाज और देश की भी सेवा की है और जिनका जीवन अगणित विशेषताओं से भरा हुआ है। मेरे सामने कठिनाई थी कि इस सीमाबद्ध निबन्ध में उन सबका दिग्दर्शन कैसे किया जाये। / उपरोक्त विवेचन में कई आवश्यक घटनाएँ छट गई और कई महान् श्रावकों का जीवन वृत्त भी नहीं लिखा जा सका / साहित्य परामर्शक मुनि श्री बुद्धमलजी स्वामी द्वारा लिखे जा रहे 'तेरापंथ का इतिहास' (दूसरा खण्ड) ग्रन्थ में श्रावकों की विस्तृत जीवन झाँकी दी गई है, इतिहास के जिज्ञासुओं के लिए वह ग्रन्थ पठनीय है। 000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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