Book Title: Tattvagyana Balpothi Sachitra
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 2
________________ विषय - अनुक्रम १. अपने भगवान ११. जीव, कर्म, ईश्वर २. अपने गुरू और परमेष्ठी १२. अजीव और षड्द्रव्य ३. धर्म १३. विश्व (द्रव्य और पर्याय) ४. श्रावकों की दिनचर्या १४. नौ तत्व ५. जिनमंदिर (दहेरासर) विधि १५. पुण्य और पाप ६. सात व्यसन और अभक्ष्य त्याग १६. आस्रव ७. शरीर और जीव १७. संवर ८. जीव के छह स्थान १८. निर्जरा ९. जीव कितने प्रकार के होते है ? १९. बन्ध १०. जीव का स्वरूप (असली और नकली) २०. मोक्ष (नित्य मंगल - पाठ चत्तारि मंगलं चत्तारि लोगुत्तमा चत्तारिशरणं पव्वज्जामि अरिहंता मंगलं अरिहंते शरणं पव्वजामि अरिहंता लोगुत्तमा सिद्धा मंगलं सिद्धे शरणं पव्वजामि सिद्धा लोगुत्तमा साहू मंगलं साहू शरणं पव्वजामि साहू लोगुत्तमा केवलि-पन्नत्तो धम्मो मंगलं । केवलि-पन्नत्तो धम्मो लोगुत्तमो । केवलि-पन्नत्तं धम्मं शरणं पव्वजामि (चार पदार्थ मंगल है - अरिहंतों, सिद्धों, (संसार के भय से बचने के लिए - अरिहंत, (चार पदार्थ लोकोत्तम है - अरिहंत, सिद्ध, साधु साधुओं और केवलि - प्ररूपित धर्म ।) सिद्ध, सुसाधु और केवलि प्ररूपित धर्म और केवलिप्ररूपित धर्म, ये चारो लोकोत्तम हैं ।) को मैं शरणरूप स्वीकार करता हूं1) (सम्यकत्व की धारणा अरिहंतो मह देवो, जावज्जीवं सुसाहुणो गुरूणो । जिणपन्नत्तं तत्तं, ईअ सम्मत्तं मए गहि || (जीवन-पर्यंत अरिहंत मेरे देव हैं, सुसाधु मेरे गुरू है और जिनेश्वर प्ररूपित तत्त्व-धर्म, यह सम्यक्त्व मैंने शरणरूप स्वीकार किया है।) Jain Education International www.jainelibrary.org

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