Book Title: Tambakhoo Ek Rup Anek Author(s): Pushkar Muni Publisher: Z_Nahta_Bandhu_Abhinandan_Granth_012007.pdf View full book textPage 2
________________ ६१४ मुँह, गला व फेंफड़े के कैंसर के जितने रोगी होते हैं उनमें से ९०% ऐसे होते हैं जो जर्दा सेवन के अभ्यस्त होते हैं। इसी प्रकार हृदय रोग से ग्रस्त रोगियों में से भी अन्य कारणों की अपेक्षा १५ गुना अधिक वे रोगी होती हैं जो धूम्रपान करते हैं। दमा रोग से पीड़ित हर १० रोगियों में से ९ का कारण तम्बाकू सेवन होता है और ब्रोकाइटिस (क्रोनिक) रोग को ३०% रोगी धूम्रपान के अभ्यस्त होते हैं ब्रेय हेब्रेज, मधुमेह, रीढ़ की हड्डी के रोग आदि भी ऐसे हैं जिनके पीछे धूम्रपान की भूमिका अधिक रहती है। धूम्रपान - जर्दा सेवन के हानिकारक प्रभाव इस अप्राकृतिक प्रवृत्ति की प्रतिक्रिया स्वरूप मानव-तन पर अनेक हानिकारक प्रभाव होते हैं। भारत के ख्याति प्राप्त दमा रोग विशेषज्ञ डॉ. वीरेन्द्र सिंह का कथन है कि जो लोग १५ सिगरेट प्रतिदिन की दर से धूम्रपान करते हैं, उनके वक्ष में उतनी विकिरण रेडियेशन की मात्रा पहुँच जाती है जितनी ३०० एक्सरे करवाने से पहुँचती है। यह रेडियेशन फेफड़ों को दुर्बल बनाता है। उनकी यह मान्यता भी है कि चिन्ता और तनाव ग्रस्त लोग धूम्रपान का आश्रय लेते हैं और उन्हें कुछ मानसिक राहत अनुभव होने लगती है, किन्तु ऐसे लोगों को धूम्रपान करना ही नहीं चाहिए इससे हृदयाघात की आशंका तीव्र और प्रबल हो जाती है। जो व्यक्ति दो पैकेट प्रतिदिन की दर से सिगरेट पीते हैं, उनके लिए यह इतनी हानिकारक होती है, जितनी शरीर के भार में ५० किलो की अनावश्यक बढ़ोत्तरी से हुआ करती है जो अत्यधिक धूम्रपान करते या तम्बाकू उपभोग करते हैं उनके स्वाद तंतु दुर्बल हो जाते हैं। उन्हें स्वाद कम आने लगता है, वे भोजन सम्बन्धी अरुचि से भर उठते हैं। भोजन की मात्रा का कम हो जाना स्वाभाविक हैऔर ऐसे लोग दुर्बल होते जाते हैं। धूम्रपान मानव देह की स्वाभाविक कान्ति को भी नष्ट करता है जो जितना अधिक इस व्यसन में लिप्त है उसके मुख पर उतनी ही अधिक झुर्रियाँ पड़ने लगती हैं, तेज लुप्त होने लगता है और उसे अकाल वार्धक्य घेर लेता है। धूम्रपान करने वालों की सूंघने की क्षमता तो कम होती जाती है, अनेक रोगों की अत्यन्त प्रभावशाली औषधियाँ भी उनके लिए पर्याप्त लाभकारी नहीं हो पातीं। व्यक्ति की यौन क्षमता पर भी तम्बाकू सेवन का बड़ा भारी विपरीत प्रभाव होता है और इस कारण वह मानसिक रूप से तनावग्रस्त और हत्प्रभ सा हो जाता है। महिलाएँ और धूम्रपान इन दिनों महिलाओं में धूम्रपान का प्रचलन बड़ी तीव्रता के साथ बढ़ता जा रहा है। पश्चिमी देशों में तो यह प्रवृत्ति अति सामान्य रूप ग्रहण कर चुकी है; हमारे देश में भी इसकी तीव्रता बढ़ती जा रही है। ग्रामीण और नगरीय कोई भी क्षेत्र इससे छूटा हुआ नहीं है। इसके पीछे अबोधता या अज्ञान का कारण भी नहीं उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ माना जा सकता। शिक्षित महिलाएं ही अधिक धूम्रपान करती है। महिला छात्रावासों में इस प्रवृत्ति के घातक रूप में विकसित दशा के दर्शन होते हैं। वास्तव में धूम्रपान को फैशन, विलास और आधुनिकता का प्रतीक मान लिया गया और महिला भी अपनेआपको पिछड़ी और पुरातन ढर्रे भी नहीं रखना चाहती। जो भी हो किन्तु महिलाओं की शरीर रचना अपेक्षाकृत अधिक मृदुल और कोमल होती है। परिणामतः उनको धूम्रपान से अधिक तीव्रता के साथ हानियाँ होती हैं। महिला मातृत्व के वरदान से विभूषित होती है। यह जननी होती है। उसकी देह के विकार उसकी सन्तति में भी उतरते हैं और इस प्रकार भावी पीढ़ी भी विकृत होती है। इस प्रकार महिलाओं द्वारा किया जा रहा धूम्रपान दोहरे रूप से घातक सिद्ध होता है। चिकित्सकों का मत है कि गर्भवती महिलाओं को तो भूलकर भी धूम्रपान नहीं करना चाहिए। आशंका रहती है कि इससे गर्भ का शिशु रुग्ण और दुर्बल हो वह विकलांग भी हो सकता है। चिकित्सा विज्ञान यह मानता है कि गर्भ का दूसरे से पाँचवें महीने की अवधि तो इस दृष्टि से अत्यन्त संवेदनशील रहती है। माता द्वारा किये गये। धूम्रपान के धुएँ का ऐसा घातक प्रभाव शिशु पर होता है कि जन्म के पश्चात् उनमें से अधिकतर आयु इतनी ही रहती है कि वे पलने से बाहर भी नहीं आते। सौभाग्य से जो इसके पश्चात् भी जीवित रह जाते हैं वे अत्यन्त दुर्बल होते हैं। ऐसे बच्चों में रोग निरोधक क्षमता शून्यवत् रह जाती है। संक्रामक रोगों की जकड़ में ऐसे बच्चे शीघ्र ही आ जाते हैं और उनका जीवन संकट ग्रस्त बना रहता है। महिलाओं के धूम्रपान की प्रवृत्ति उनकी प्रजनन क्षमता को ही क्षतिग्रस्त कर देता है। बीड़ी-सिगरेट का निकोटीन उनके कारमोनल सिस्टम को और उनके मस्तिष्क को कुप्रभावित करता है। इसके परिणामतः या तो स्त्री गर्भ धारण कर ही नहीं पाती या इसमें बड़ा विलम्ब हो जाता है। अनेक बार ऐसा भी होता है कि गर्भाशय के स्थान पर गर्भ नालियों में ठहर जाता है गर्भपात ही इसका परिणाम होता है सम्बन्धित विज्ञान इसे 'एप्टोपिक प्रेगनेंसी' कहता है ऐसे प्रसंगों में जिनमें माता धूम्रपान की अभ्यस्त हो- प्रसय अवधिपूर्व ही हो जाता है, बच्चे का भार असाधारण रूप से कम होता है। उसका आकार भी बहुत छोटा होता है। अनुसंधानों का निष्कर्ष है कि माता द्वारा किया गया धूम्रपान गर्भस्थ शिशु को मिलने वाली ऑक्सीजन में कमी आ जाती है। जिस थैली में विकासमान शिशु लिपटा रहता है-वह थैली धूम्रपान से विषाक्त हो जाती है। धूम्रपान से अनेक विष और विकार माता के रक्त में मिल जाते हैं। इसी विषाक्त रक्त से जब शिशु का पोषण हो तो शिशु का स्वस्थ होना स्वाभाविक भी नहीं है। उसका विकास अवरुद्ध रहे तो इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं। ऐसा माना जाता है। Do GOO gar SD 04010Page Navigation
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