Book Title: Tambakhoo Ek Rup Anek
Author(s): Pushkar Muni
Publisher: Z_Nahta_Bandhu_Abhinandan_Granth_012007.pdf
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 500AD SHGAV V alc0:00 R-50000 roots (GOA000 P5007 CAR0:00:00 0000 80090090050000 | जन-मंगल धर्म के चार चरण ६१३ । तम्बाकू एक : रूप अनेक Pora का , -उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. मिर्जा गालिब उर्दू-फारसी के प्रसिद्ध कवि थे। उन्हें तम्बाकू- । तम्बाकू के घातक तत्वसेवन, धूम्रपान बड़ा प्रिय था। एक बार वे अपने एक मित्र के साथ तम्बाकू-सेवन और धूम्रपान अनेक रोगों का जनक है। कतिपय तम्बाकू के खेत में खड़े थे। पास ही कुछ गधे भी चुप-चाप खड़े थे। रोग तो सर्वथा असाध्य एवं मारक भी होते हैं, अन्य भी घोर उनकी ओर संकेत करते हुए मित्र ने कहा-"मिर्जा, देखो-गधे भी पीड़ा-दायक होते हैं। धूम्रपान चाहे कितना ही आनन्दप्रद क्यों न तम्बाकू नहीं खाते" [तम्बाकू की खेती बड़ी सुरक्षित रहती है, उसे प्रतीत होता हो, अन्ततः तो वह नारकीय यातनाओं का ही कारण कोई पशु नहीं चरते]। गालिब ने मित्र के व्यंग्य को समझते हुए बनता है। जर्दा अनेक घातक तत्वों से युक्त होता है उसी के ये मुस्करा कर उत्तर दिया-हाँ भाई, गधे ही नहीं खाते।" मारक और त्रासद परिणाम होते हैं। ____ मिर्जा गालिब ने उक्त कथन कदाचित् विनोदपूर्वक किया था, सिगरेट के धुएँ में लगभग ४000 तत्वों की खोज हुई है। किन्तु आज प्रतीत होता है, मानो नये युग की नयी पीढ़ी ने तो इस इनमें से निकोटीन नामक तत्व अत्यन्त प्रचण्ड रूप से हानिकारक कथन को जैसे अपना जीवन मंत्र ही बना लिया है। इनकी मान्यता होता है। इसकी विषाक्तता और घातकता का अनुमान इस तथ्य से में धूम्रपान सभ्यता का प्रतिमान है। जो सिगरेट नहीं पीता वह लगाया जा सकता है कि अनेक कीटनाशक रसायनों और दवाओं असभ्य, वन्य और पिछड़ा हुआ माना जाता है। सभ्य सोसायटी की, में निकोटीन का उपयोग किया जाता है। निरन्तर और प्रचुर मात्रा शान और वैभव की यही अभिव्यक्ति रह गयी है। आश्चर्य है जिस में जब निकोटीन शरीर में प्रवेश करता है तो इससे हृदय की पीढ़ी से समाज और देश प्रगति के प्रकाश की प्रतीक्षा करता है। धमनियों में जमाव होने लगता है, धमनियाँ सँकरी होने लगती हैं वही धुएँ के अंधियारे गुबार में घिरा हुआ है। भारत ही नहीं सारे । और रक्त प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है। दुष्परिणाम स्वरूप हृदय रोग विश्व की स्थिति यही बनी हुई है। न केवल पुरुष, अपितु स्त्रियाँ | हो जाता है। आँतों में अल्सर भी हो सकता है और धूम्रपान से भी, कम आयु के बालक-बालिकाएँ भी इस अभिशाप से ग्रस्त हैं। कार्बन मोनोक्साइड नामक अन्य तत्व रक्त में मिश्रित होकर एक ग्रामीण क्षेत्रों में और नगरों में, शिक्षितों में और अशिक्षितों में, ऐसी प्रतिक्रिया देता है जिससे शरीर की रोग-निरोधक क्षमता कम धनाढ्यों और निर्धनों में सभी ओर इस व्यसन को सर्वथा हो जाती है। धूम्र से निकले अनेक तत्व कैंसर (विशेषतः गले, विकसित रूप में देखा जा सकता है। भारत में कम से कम दस । फेफड़े के) को जन्म देते हैं। कुछ तत्व रक्त में मिलकर गुर्दे, करोड़ पुरुष और ५ करोड़ महिलाएँ इस अभिशाप के काले साये | मूत्राशय और पाचन थैली का कैंसर विकसित कर देते हैं। विज्ञान से घिरी हुई हैं। भारत में कुल जितने धूम्रपान करने वाले हैं, उनमें वेत्ताओं का मत है कि निकोटीन और कार्बन मोनोक्साइड के से ५६% ग्रामीण क्षेत्रों में और ३४% शहरी क्षेत्र में हैं। २५% अतिरिक्त भी २२ अन्य प्रकार के विष तम्बाकू में रहते हैं; यथा महिलाएँ और ७५% पुरुष हैं। भारत में लगभग १० लाख लोग मार्श (नपुंसकता का कारण), अमोनिया (पाचन शक्ति का क्षय), प्रतिवर्ष तम्बाकू सेवन और धूम्रपान के कारण अकाल मृत्यु को कार्बोलिक एसिड (अनिद्रा, स्मरण शक्ति का क्षय, चिड़चिड़ापन), प्राप्त हो जाते हैं। अमरीका और चीन के पश्चात् भारत विश्व का परफेरोल विष (दन्त क्षय), एजालिन विष (रक्त विकार) सबसे बड़ा तम्बाकू उत्पादक देश माना जाता है। स्वाभाविक है कि आदि-आदि। भारत में इसके उपभोक्ताओं की संख्या भी अधिक हो। यह और भी इन विषैले पदार्थों और तत्वों की मारक शक्ति का अनुमान इस अधिक दुर्भाग्यपूर्ण है कि किशोरावस्था से ही यह कुटेव जड़ तथ्य से लगाया जा सकता है कि यदि एक सिगरेट का सारा का पकड़ने लगी है। एक अध्ययन से पता चलता है कि गोवा में १८% सारा धुआँ शरीर में रह जाय तो वह मृत्यु के लिए पर्याप्त होता है। स्कूली बच्चे धूम्रपान करते हैं। बीस वर्ष से अधिक आयु के ऐसे एक सिगरेट का उपभोग १४ मिनट आयु कम कर देता है। युवक ५०-६४% और युवतियाँ १४-२३% है। कहा जाता है कि सद्गुणों को समाज में फैलाने के लिए बहुत श्रम करना होता है, | तम्बाकू सेवन-भयावह संहारककिन्तु दुर्गुणों का प्रचार-प्रसार स्वतः ही हो जाता है। उन्हें तम्बाकू अपनी विषैली तात्विक संरचना के कारण विशेष रूप जनसामान्य का अपनाव भी बड़ी गहराई के साथ मिलता है। से इस शताब्दी का भयावह और प्रचण्ड संहारक हो गयी है। तम्बाकू-सेवन और धूम्रपान का साथ भी ऐसा ही है। “गली-गली अनेक-अनेक रोगों और पीड़ाओं का आश्रय एक धूम्रपान ही नाना गोरस फिरै, मदिरा बैठि बिकाय।" विध नरक का स्रष्टा हो गया है। मानव जाति वर्तमान शताब्दी में अनेक रोगों की शिकार हुई है जिसके अनेकानेक कारण हैं और १. इण्डियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च का सर्वेक्षण उन कारणों में तम्बाकू-सेवन का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। 4900 60600 arOARD htDN009.6 PORAGROUGH 20RRA600-00-0000000000 8000RSoPosteroRARASRA-BASED RAPato date 90%E0902 Navbeprayer Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१४ मुँह, गला व फेंफड़े के कैंसर के जितने रोगी होते हैं उनमें से ९०% ऐसे होते हैं जो जर्दा सेवन के अभ्यस्त होते हैं। इसी प्रकार हृदय रोग से ग्रस्त रोगियों में से भी अन्य कारणों की अपेक्षा १५ गुना अधिक वे रोगी होती हैं जो धूम्रपान करते हैं। दमा रोग से पीड़ित हर १० रोगियों में से ९ का कारण तम्बाकू सेवन होता है और ब्रोकाइटिस (क्रोनिक) रोग को ३०% रोगी धूम्रपान के अभ्यस्त होते हैं ब्रेय हेब्रेज, मधुमेह, रीढ़ की हड्डी के रोग आदि भी ऐसे हैं जिनके पीछे धूम्रपान की भूमिका अधिक रहती है। धूम्रपान - जर्दा सेवन के हानिकारक प्रभाव इस अप्राकृतिक प्रवृत्ति की प्रतिक्रिया स्वरूप मानव-तन पर अनेक हानिकारक प्रभाव होते हैं। भारत के ख्याति प्राप्त दमा रोग विशेषज्ञ डॉ. वीरेन्द्र सिंह का कथन है कि जो लोग १५ सिगरेट प्रतिदिन की दर से धूम्रपान करते हैं, उनके वक्ष में उतनी विकिरण रेडियेशन की मात्रा पहुँच जाती है जितनी ३०० एक्सरे करवाने से पहुँचती है। यह रेडियेशन फेफड़ों को दुर्बल बनाता है। उनकी यह मान्यता भी है कि चिन्ता और तनाव ग्रस्त लोग धूम्रपान का आश्रय लेते हैं और उन्हें कुछ मानसिक राहत अनुभव होने लगती है, किन्तु ऐसे लोगों को धूम्रपान करना ही नहीं चाहिए इससे हृदयाघात की आशंका तीव्र और प्रबल हो जाती है। जो व्यक्ति दो पैकेट प्रतिदिन की दर से सिगरेट पीते हैं, उनके लिए यह इतनी हानिकारक होती है, जितनी शरीर के भार में ५० किलो की अनावश्यक बढ़ोत्तरी से हुआ करती है जो अत्यधिक धूम्रपान करते या तम्बाकू उपभोग करते हैं उनके स्वाद तंतु दुर्बल हो जाते हैं। उन्हें स्वाद कम आने लगता है, वे भोजन सम्बन्धी अरुचि से भर उठते हैं। भोजन की मात्रा का कम हो जाना स्वाभाविक हैऔर ऐसे लोग दुर्बल होते जाते हैं। धूम्रपान मानव देह की स्वाभाविक कान्ति को भी नष्ट करता है जो जितना अधिक इस व्यसन में लिप्त है उसके मुख पर उतनी ही अधिक झुर्रियाँ पड़ने लगती हैं, तेज लुप्त होने लगता है और उसे अकाल वार्धक्य घेर लेता है। धूम्रपान करने वालों की सूंघने की क्षमता तो कम होती जाती है, अनेक रोगों की अत्यन्त प्रभावशाली औषधियाँ भी उनके लिए पर्याप्त लाभकारी नहीं हो पातीं। व्यक्ति की यौन क्षमता पर भी तम्बाकू सेवन का बड़ा भारी विपरीत प्रभाव होता है और इस कारण वह मानसिक रूप से तनावग्रस्त और हत्प्रभ सा हो जाता है। महिलाएँ और धूम्रपान इन दिनों महिलाओं में धूम्रपान का प्रचलन बड़ी तीव्रता के साथ बढ़ता जा रहा है। पश्चिमी देशों में तो यह प्रवृत्ति अति सामान्य रूप ग्रहण कर चुकी है; हमारे देश में भी इसकी तीव्रता बढ़ती जा रही है। ग्रामीण और नगरीय कोई भी क्षेत्र इससे छूटा हुआ नहीं है। इसके पीछे अबोधता या अज्ञान का कारण भी नहीं उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ माना जा सकता। शिक्षित महिलाएं ही अधिक धूम्रपान करती है। महिला छात्रावासों में इस प्रवृत्ति के घातक रूप में विकसित दशा के दर्शन होते हैं। वास्तव में धूम्रपान को फैशन, विलास और आधुनिकता का प्रतीक मान लिया गया और महिला भी अपनेआपको पिछड़ी और पुरातन ढर्रे भी नहीं रखना चाहती। जो भी हो किन्तु महिलाओं की शरीर रचना अपेक्षाकृत अधिक मृदुल और कोमल होती है। परिणामतः उनको धूम्रपान से अधिक तीव्रता के साथ हानियाँ होती हैं। महिला मातृत्व के वरदान से विभूषित होती है। यह जननी होती है। उसकी देह के विकार उसकी सन्तति में भी उतरते हैं और इस प्रकार भावी पीढ़ी भी विकृत होती है। इस प्रकार महिलाओं द्वारा किया जा रहा धूम्रपान दोहरे रूप से घातक सिद्ध होता है। चिकित्सकों का मत है कि गर्भवती महिलाओं को तो भूलकर भी धूम्रपान नहीं करना चाहिए। आशंका रहती है कि इससे गर्भ का शिशु रुग्ण और दुर्बल हो वह विकलांग भी हो सकता है। चिकित्सा विज्ञान यह मानता है कि गर्भ का दूसरे से पाँचवें महीने की अवधि तो इस दृष्टि से अत्यन्त संवेदनशील रहती है। माता द्वारा किये गये। धूम्रपान के धुएँ का ऐसा घातक प्रभाव शिशु पर होता है कि जन्म के पश्चात् उनमें से अधिकतर आयु इतनी ही रहती है कि वे पलने से बाहर भी नहीं आते। सौभाग्य से जो इसके पश्चात् भी जीवित रह जाते हैं वे अत्यन्त दुर्बल होते हैं। ऐसे बच्चों में रोग निरोधक क्षमता शून्यवत् रह जाती है। संक्रामक रोगों की जकड़ में ऐसे बच्चे शीघ्र ही आ जाते हैं और उनका जीवन संकट ग्रस्त बना रहता है। महिलाओं के धूम्रपान की प्रवृत्ति उनकी प्रजनन क्षमता को ही क्षतिग्रस्त कर देता है। बीड़ी-सिगरेट का निकोटीन उनके कारमोनल सिस्टम को और उनके मस्तिष्क को कुप्रभावित करता है। इसके परिणामतः या तो स्त्री गर्भ धारण कर ही नहीं पाती या इसमें बड़ा विलम्ब हो जाता है। अनेक बार ऐसा भी होता है कि गर्भाशय के स्थान पर गर्भ नालियों में ठहर जाता है गर्भपात ही इसका परिणाम होता है सम्बन्धित विज्ञान इसे 'एप्टोपिक प्रेगनेंसी' कहता है ऐसे प्रसंगों में जिनमें माता धूम्रपान की अभ्यस्त हो- प्रसय अवधिपूर्व ही हो जाता है, बच्चे का भार असाधारण रूप से कम होता है। उसका आकार भी बहुत छोटा होता है। अनुसंधानों का निष्कर्ष है कि माता द्वारा किया गया धूम्रपान गर्भस्थ शिशु को मिलने वाली ऑक्सीजन में कमी आ जाती है। जिस थैली में विकासमान शिशु लिपटा रहता है-वह थैली धूम्रपान से विषाक्त हो जाती है। धूम्रपान से अनेक विष और विकार माता के रक्त में मिल जाते हैं। इसी विषाक्त रक्त से जब शिशु का पोषण हो तो शिशु का स्वस्थ होना स्वाभाविक भी नहीं है। उसका विकास अवरुद्ध रहे तो इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं। ऐसा माना जाता है। Do GOO gar SD 04010 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन-मंगल धर्म के चार चरण कि गर्भवती स्त्री यदि एक पैकेट सिगरेट प्रतिदिन प्रयोग में लाती है। तो गर्भस्थ शिशु का भार तीन सौ ग्राम कम रह जाता है। शिशु कितना अभागा है कि उसे उस कुकृत्य का दुष्परिणाम भोगना पड़ता है जो उसने नहीं किया। क्या माता का दायित्व नहीं कि वह अपनी संतति का हित साधे। यदि गंभीरता के साथ स्त्रियाँ इस दृष्टि से चिन्तन करें तो उन्हें व्यसन-परित्याग की प्रेरणा प्राप्त हो सकती है। गर्भस्थ शिशु का अस्तित्व उस धूम्रपान से खतरे में पड़ जाता है, जो उसकी माता द्वारा किया जाता है मात्र यहीं तक संकट का क्षेत्र सीमित नहीं रह जाता है। पति अथवा वे अन्यजन जिनके संसर्ग में महिला रहती है, उनके धूम्रपान का प्रभाव भी गर्भस्थ शिशु पर हो जाता है। ये अन्यजन जब धूम्रपान करते हैं और महिला उनके समीप होती है तो धुएँ की यत्किंचित मात्रा महिला के शरीर में भी प्रविष्ट हो जाती है और तब वह विषाक्त धुआँ अपनी भूमिका उसी प्रकार निभाने लग जाता है जैसे स्वयं उसी महिला ने धूम्रपान किया हो। यही कारण है कि ऐसी गर्भवती महिलाओं के शिशु इस अभिशाप से ग्रस्त हो जाते हैं। गर्भवती महिला को अपनी भावी संतति के योगक्षेम के लिए न स्वयं धूम्रपान करना चाहिए और नहीं उन लोगों के संग रहना चाहिए जो धूम्रपान करते हो चाहे ऐसा व्यक्ति उसका पति ही क्यों न हो। अधिक उत्तम तो यह है कि ऐसे भावी माता और पिता दोनों को ही धूम्रपान त्याग देना चाहिए। इस शुभ निवृत्ति के बड़े ही मंगलकारी दूरगामी परिणाम सुलभ होंगे। तम्बाकू एक रूप अनेक तम्बाकू का सेवन धूम्रपान के रूप में तो प्रमुख रूप से होता ही है, इसके अन्य की अनेक रूप हैं। सिगरेट, बीड़ी, पाइप, च्यूरट, हुका आदि धूम्रपान की विविध विधियों हैं यह मानना मिथ्या भ्रम है कि इनमें से कोई एक अधिक और दूसरी कम हानिकारक है। सिगरेट पीने से तो हुक्का पीना अच्छा है क्योंकि हुक्के में धुआँ पानी में होकर आता है और ठण्डा हो जाता है। इस इस प्रकार की धारणा वाले व्यक्ति स्वयं को छलने के अतिरिक्त अन्यजनों को भी भ्रमित करते हैं। धूम्रपान का कोई धुआँ गर्म नहीं होता, नहीं वह गर्म होने के कारण ही हानिकारक होता है। यह भी सत्य नहीं है कि हुक्के का धुआँ पानी में से होकर ठण्डा हो जाता हो। ठण्डा होकर वह लाभकारी हो जाता हो वह भी मिथ्याधारणा है। धूम्रपान तो धूम्रपान ही होता है यह प्रत्येक दशा में हानिकारक ही होता है। उसकी निकोटीन सत्य की मारकलीला किसी भी स्थिति में निष्क्रिय हो ही नहीं सकती। लोग तो यह भी बड़ी आस्था के साथ मानने लगे हैं कि बीड़ी पीना ही हानिकारक है। बीड़ी की अपेक्षा सिगरेट पीना अच्छा है। वास्तविकता यह है कि घातक तो बीड़ी भी है और सिगरेट भी प्र DS D. 50.00 ६१५ यह भी सत्य है कि एक सिगरेट की अपेक्षा एक बीड़ी में निकोटीन की मात्रा डेढ़ी होती है इसका अर्थ यह नहीं होता कि सिगरेट हानिकारक पदार्थों की सूची से बाहर हो गयी हो। एक बीड़ी में कैंसर उत्पन्न करने की जितनी क्षमता है, उतनी क्षमता दो सिगरेटों में होती है, किन्तु होती अवश्य है। यही कहा जा सकता है कि बीड़ी की अपेक्षा सिगरेट का खतरा कुछ कम रहता है। यह मानना भी ठीक नहीं होगा कि फिल्टर युक्त सिगरेट कम हानिकारक होती है। फिल्टर में सिगरेट के निकोटीन तत्व को कम करने की क्षमता नहीं होती। धूम्रपान के अतिरिक्त भी तम्बाकू उपभोग की अन्य अनेक विधियाँ हैं। चूने के साथ मिलाकर तम्बाकू का सेवन किया जाता है। ऐसा मिश्रण निचले होठ और दांतों के बीच दबा कर रखा जाता है। यह मसूढ़ों और दाँतों के लिए हानिकारक होता है। आजकल बाजार में बनी बनायी ऐसी खैनी भी कई प्रकार के पाउचों में मिलने लगी है। खैनी का सिद्धान्त है कि ताजा ही प्रयुक्त की जाय। ये पाउच न जाने कब के बने होते हैं, ज्यों-ज्यों समय व्यतीत होता जाता है उसकी विषाक्तता बढ़ती जाती है। इस दृष्टि से इन खैनियों के प्रति अविश्वसनीयता का विकास स्वाभाविक है। पान पराग-फिर एक नया संकट स्रोत हो गया है। यह बड़ा ही घातक स्रोत है। एक व्यक्ति उदर शूल से बहुत पीड़ित था। असह्य पीड़ा से तड़पते इस रोगी की परीक्षा की गयी और चिकित्सकों के शल्य चिकित्सा का निर्णय लेना पड़ा। रोगी के उदर से बाह्य पदार्थ को एक भारी गोला निकला और रोगी को शान्ति तथा पीड़ा मुक्ति प्राप्त हो गयी। रासायनिक परीक्षण से ज्ञात हुआ कि इस गोले का निर्माण उदर में पान पराग के जमाव के कारण हुआ था। पान पराग में मिले सुपारी के नुकीले टुकड़े जबड़े की भीतरी तह को छीलकर खुरदरा कर देते हैं, पान पराग का जर्दा रस बनकर जबड़ों में इस प्रकार जज्ब होता रहता है। मुँह का कैंसर इसका दुष्परिणाम बनता है। आश्चर्य है कि युवा पीढ़ी इस घातक व्यसन की दास होती जा रही है। किसी भी पल उनका मुख पान पराग से रिक्त नहीं मिलता। दिन-ब-दिन पान पराग के नये नये पाउच ढेरों की मात्रा में निकलते जा रहे हैं। किराना की दुकान हो, पान की दुकान को प्रोविजन स्टोर अथवा जनरल मर्चेन्ट की दुकान हो- अनेकानेक ट्रेडमार्कों की रंग-बिरंगी पान पराग पौच की बन्दनवारों से सजी मिलती है। यह सब इस तथ्य की घोतक हैं कि इस घातक पदार्थ की खपत कितनी बढ़ गयी है। हमारा समाज तम्बाकू व्यसन के घेरे में सिमटता चला जा रहा है। सचेत होने और विशेष रूप से सचेत करने की आवश्यकता इस युग में चरम सीमा पर पहुँच गयी है कि पान पराग जैसा भयावह तम्बाकू व्यसन घोर अनर्थ कर रहा है और इसके उपभोक्ता आत्मघाती चेष्टा ही कर रहे हैं। पान पराग, रजनी गंधा, अम्बर, तुलसी मिक्स, अमृत-ना-ना नामों से प्रचलित यह विष न अमृत है, " Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ do000000000 | 616 Raosaha उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ / न तुलसी है, न पराग है और न ही और कुछ है। यह है तो केवल धूम्रपान और तम्बाकू व्यसन के भयंकर परिणामों के प्रति जन 'घातक पदार्थ' है। जागृति और चेतना का प्रसार आज के युग की माँग है। जन शिक्षा अनेक जन पान के साथ जर्दा लेने के अभ्यस्त होते हैं। पान में द्वारा समाज को सज्ञान कर व्यक्ति-व्यक्ति में इसके प्रति विकर्षण लिपटे रहने के कारण जर्दा मुँह के अवयवों के सीधे सम्पर्क में नहीं उत्पन्न कर जनमानस तैयार किया जाना अत्यावश्यक हो गया। आता-यह इस विधि में भले ही कुछ ठीक बात है, किन्तु चबा लेने प्रचार माध्यमों और स्वास्थ्य संगठनों, सामाजिक संगठनों और के बाद तो यह स्थिति भी नहीं रह सकती। पान के साथ सुपारी स्वैच्छिक संस्थाओं को यह पवित्र दायित्व वहन करना होगा। वही संकट उपस्थित कर देती है जो पान पराग के कारण बनती धूम्रपान और जर्दे का नारा हैहै। तम्बाकू अपने कुछ छद्म रूपों में भी प्रयुक्त हो रही है। कभी जो हमको अपनायेगा। किमाम के रूप में तो कभी मुश्कीदाने के रूप में यह पान के साथ वह मिट्टी में मिल जायेगा। काम में आती है। पान में जर्दा तो मिला ही है-इस रूप में वही तो इन संगठनों को इसके उत्तर में नारा बुलन्द करना चाहिएजर्दा अतिरिक्त मात्रा में बढ़ जाता है। इसका मारक और घातक प्रभाव केवल स्वरूप के बदल जाने से कम नहीं हो जाता। चाहे बन्द करो जर्दे का फाटक। नसवार, नासक, तपकीर का मंजन किया जाय और चाहे उसे सूंघ / रुक जायेगा मौत का नाटक // कर नशा किया जाय-यह भी हानिकारक ही होता है। rsa व्यर्थ घमण्ड - 1306: 5canRap माटी का तू पुतला, करता क्यों गरूर है। घमण्ड करने से होते, मानव चकनाचूर है।।टेर। घमण्ड की सुन लेना, फव्वारे की कहानी है। आकाश को छूने चला, फव्वारे का पानी है। सिर के बल नीचे गिरा, हो गया मजबूर है।।१।। देखो राजा रावण का, बजा जग में डंका था। किया जब घमण्ड गया, मालिकपन लंका का॥ का मारा गया युद्ध में वह, धड़ से सिर दूर है।।२।। यादवों के दिल में देखो, कितना घमण्ड था। उनका गया घमण्ड और, व्यवहार उद्दण्ड था। कट-कट मरे सारे व्यर्थ का फितूर है॥३॥ आज कहाँ गया देखो, कारूँ का खजाना है। कहता "पुष्कर" बनता क्यों, माया में दिवाना है। "घमण्डी का सिर नीचा" कहावत यह मशहूर है।।४।। -उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि (पुष्कर-पीयूष से) मापकीana o os Bam Lamgangan PAgreeYADAAGRA 8.CONTHESIDO 00000000000.030 0. DSION 2090805-Dinistubigyan 80000000000