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जन-मंगल धर्म के चार चरण
कि गर्भवती स्त्री यदि एक पैकेट सिगरेट प्रतिदिन प्रयोग में लाती है। तो गर्भस्थ शिशु का भार तीन सौ ग्राम कम रह जाता है। शिशु कितना अभागा है कि उसे उस कुकृत्य का दुष्परिणाम भोगना पड़ता है जो उसने नहीं किया। क्या माता का दायित्व नहीं कि वह अपनी संतति का हित साधे। यदि गंभीरता के साथ स्त्रियाँ इस दृष्टि से चिन्तन करें तो उन्हें व्यसन-परित्याग की प्रेरणा प्राप्त हो सकती है।
गर्भस्थ शिशु का अस्तित्व उस धूम्रपान से खतरे में पड़ जाता है, जो उसकी माता द्वारा किया जाता है मात्र यहीं तक संकट का क्षेत्र सीमित नहीं रह जाता है। पति अथवा वे अन्यजन जिनके संसर्ग में महिला रहती है, उनके धूम्रपान का प्रभाव भी गर्भस्थ शिशु पर हो जाता है। ये अन्यजन जब धूम्रपान करते हैं और महिला उनके समीप होती है तो धुएँ की यत्किंचित मात्रा महिला के शरीर में भी प्रविष्ट हो जाती है और तब वह विषाक्त धुआँ अपनी भूमिका उसी प्रकार निभाने लग जाता है जैसे स्वयं उसी महिला ने धूम्रपान किया हो। यही कारण है कि ऐसी गर्भवती महिलाओं के शिशु इस अभिशाप से ग्रस्त हो जाते हैं। गर्भवती महिला को अपनी भावी संतति के योगक्षेम के लिए न स्वयं धूम्रपान करना चाहिए और नहीं उन लोगों के संग रहना चाहिए जो धूम्रपान करते हो चाहे ऐसा व्यक्ति उसका पति ही क्यों न हो। अधिक उत्तम तो यह है कि ऐसे भावी माता और पिता दोनों को ही धूम्रपान त्याग देना चाहिए। इस शुभ निवृत्ति के बड़े ही मंगलकारी दूरगामी परिणाम सुलभ होंगे।
तम्बाकू एक रूप अनेक
तम्बाकू का सेवन धूम्रपान के रूप में तो प्रमुख रूप से होता ही है, इसके अन्य की अनेक रूप हैं। सिगरेट, बीड़ी, पाइप, च्यूरट, हुका आदि धूम्रपान की विविध विधियों हैं यह मानना मिथ्या भ्रम है कि इनमें से कोई एक अधिक और दूसरी कम हानिकारक है। सिगरेट पीने से तो हुक्का पीना अच्छा है क्योंकि हुक्के में धुआँ पानी में होकर आता है और ठण्डा हो जाता है। इस इस प्रकार की धारणा वाले व्यक्ति स्वयं को छलने के अतिरिक्त अन्यजनों को भी भ्रमित करते हैं। धूम्रपान का कोई धुआँ गर्म नहीं होता, नहीं वह गर्म होने के कारण ही हानिकारक होता है। यह भी सत्य नहीं है कि हुक्के का धुआँ पानी में से होकर ठण्डा हो जाता हो। ठण्डा होकर वह लाभकारी हो जाता हो वह भी मिथ्याधारणा है। धूम्रपान तो धूम्रपान ही होता है यह प्रत्येक दशा में हानिकारक ही होता है। उसकी निकोटीन सत्य की मारकलीला किसी भी स्थिति में निष्क्रिय हो ही नहीं सकती।
लोग तो यह भी बड़ी आस्था के साथ मानने लगे हैं कि बीड़ी पीना ही हानिकारक है। बीड़ी की अपेक्षा सिगरेट पीना अच्छा है। वास्तविकता यह है कि घातक तो बीड़ी भी है और सिगरेट भी
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यह भी सत्य है कि एक सिगरेट की अपेक्षा एक बीड़ी में निकोटीन की मात्रा डेढ़ी होती है इसका अर्थ यह नहीं होता कि सिगरेट हानिकारक पदार्थों की सूची से बाहर हो गयी हो। एक बीड़ी में कैंसर उत्पन्न करने की जितनी क्षमता है, उतनी क्षमता दो सिगरेटों में होती है, किन्तु होती अवश्य है। यही कहा जा सकता है कि बीड़ी की अपेक्षा सिगरेट का खतरा कुछ कम रहता है। यह मानना भी ठीक नहीं होगा कि फिल्टर युक्त सिगरेट कम हानिकारक होती है। फिल्टर में सिगरेट के निकोटीन तत्व को कम करने की क्षमता नहीं होती।
धूम्रपान के अतिरिक्त भी तम्बाकू उपभोग की अन्य अनेक विधियाँ हैं। चूने के साथ मिलाकर तम्बाकू का सेवन किया जाता है। ऐसा मिश्रण निचले होठ और दांतों के बीच दबा कर रखा जाता है। यह मसूढ़ों और दाँतों के लिए हानिकारक होता है। आजकल बाजार में बनी बनायी ऐसी खैनी भी कई प्रकार के पाउचों में मिलने लगी है। खैनी का सिद्धान्त है कि ताजा ही प्रयुक्त की जाय। ये पाउच न जाने कब के बने होते हैं, ज्यों-ज्यों समय व्यतीत होता जाता है उसकी विषाक्तता बढ़ती जाती है। इस दृष्टि से इन खैनियों के प्रति अविश्वसनीयता का विकास स्वाभाविक है। पान पराग-फिर एक नया संकट स्रोत हो गया है। यह बड़ा ही घातक स्रोत है। एक व्यक्ति उदर शूल से बहुत पीड़ित था। असह्य पीड़ा से तड़पते इस रोगी की परीक्षा की गयी और चिकित्सकों के शल्य चिकित्सा का निर्णय लेना पड़ा। रोगी के उदर से बाह्य पदार्थ को एक भारी गोला निकला और रोगी को शान्ति तथा पीड़ा मुक्ति प्राप्त हो गयी। रासायनिक परीक्षण से ज्ञात हुआ कि इस गोले का निर्माण उदर में पान पराग के जमाव के कारण हुआ था। पान पराग में मिले सुपारी के नुकीले टुकड़े जबड़े की भीतरी तह को छीलकर खुरदरा कर देते हैं, पान पराग का जर्दा रस बनकर जबड़ों में इस प्रकार जज्ब होता रहता है। मुँह का कैंसर इसका दुष्परिणाम बनता है। आश्चर्य है कि युवा पीढ़ी इस घातक व्यसन की दास होती जा रही है। किसी भी पल उनका मुख पान पराग से रिक्त नहीं मिलता। दिन-ब-दिन पान पराग के नये नये पाउच ढेरों की मात्रा में निकलते जा रहे हैं। किराना की दुकान हो, पान की दुकान को प्रोविजन स्टोर अथवा जनरल मर्चेन्ट की दुकान हो- अनेकानेक ट्रेडमार्कों की रंग-बिरंगी पान पराग पौच की बन्दनवारों से सजी मिलती है। यह सब इस तथ्य की घोतक हैं कि इस घातक पदार्थ की खपत कितनी बढ़ गयी है। हमारा समाज तम्बाकू व्यसन के घेरे में सिमटता चला जा रहा है। सचेत होने और विशेष रूप से सचेत करने की आवश्यकता इस युग में चरम सीमा पर पहुँच गयी है कि पान पराग जैसा भयावह तम्बाकू व्यसन घोर अनर्थ कर रहा है और इसके उपभोक्ता आत्मघाती चेष्टा ही कर रहे हैं। पान पराग, रजनी गंधा, अम्बर, तुलसी मिक्स, अमृत-ना-ना नामों से प्रचलित यह विष न अमृत है,
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