Book Title: Syadwad bhasha Devdharmpariksha Adhyatmopnishad Adhyatmikmatpariksha Yatilakshansamucchay
Author(s): Manvijayji, Yashovijay Upadhyay,
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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यतिख
॥ ४३ ॥
17 | तं खलु फुरुं अपत्चे पत्तानिवेिसमहिचा ॥ ८० ॥ इहरा उ दाणधम्मे संकुए होइ पवयणुड्डाहो । मिनुत्तमो जय श्य एना देसणासुद्धा ॥ ८१ ॥ इयरेसु वि विसएस जासा गुणदोसजाए एवं | जासई सवं सम्मं जह जणि खीणदोसेहिं ॥ ८२॥ | गुरुणा य अणुमा गुरुनावं देसउ लडुं जम्दा । सीसस्स हुंति सीसा ए हुति सीसा असीसस्स ॥ ८३ ॥ सत्यघुणा | वि तर मनत्प्रेणेव सासितं सवं । सदं नो जंप जमेस श्रहच्च णिश्रं च ॥ ८४ ॥ जंच ए सुते विहिए य | परिसिद्ध जमि चिररूढं । समविगप्पियदोसा तं पिए दूसंति गीयत्थ ॥ ८५ ॥ संविग्गा गीयतमा विहिरसिया परिणो श्रसी । तददूसि माय रिसई को शिवारे ॥ ८६ ॥ श्रइसाहसमेत्र्यं जं उस्सुत्तपरूवणाकमुविवागं । | जाणंतहि विहिकड़ गिद्दोसा सुत्तबनत्थे ॥ ८७ ॥ यियावासाई गारवर सिया गहित्तु मुझजणं । श्रसंबणं पुढं | पारंति पमायगत्तंमि ॥ ८८ ॥ आलंबणाण नरि लोगो जीवस्स श्रजयकामस्स । जं जं पिछड़ लोए तं तं श्रालंबणं कुण्ड || ८७ ॥ जो जं सेवइ दोसं संणिहिपमुहं तु सो अनिििवद्यो । ठावेश गुणमहेजं श्रववायपयं पुरो काउं ॥ ए० ॥ | परिहर5 जं च दोसं सछंदविहार अनि विद्यो । कप्पियसेवा वि दु लुंपइ तं कोई परिणी ॥ १ ॥ तं पुरा विसु| ऊसळा सुसंवायं विणा ए संसंति । श्रवही रिजण नवरं सुप्राणुरूवं परूविंति ॥ ९२ ॥ वइसइ धम्मगुनं हि श्रकंखी | अप्पणो परंसिं च । पत्तापत्तविवेगो हि कंखित्तं च हि ॥ ९३ ॥ पत्तंमि देसला खलु पियमा कल्लाणसाहणं होई । कुड़ का पत्तपत्ता विणिवायसहस्सकोमी ॥ ए४ ॥ विफला इमा अपत्ते इस्सलप्पा तर्ज जर्ज जाि । पढमे कुठे | | वितिए मूढे दुग्गाहिए तइए ॥ २ ॥ श्रमे घरे हित्तं जहा जखं तं घरं विलासेइ । इय सिद्धंतरहस्सं अप्पाहारं
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समुच्चय.
"18 11
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