Book Title: Swetambara Parampara me Ramkatha
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Shwetambar_Sthanakvasi_Jain_Sabha_Hirak_Jayanti_Granth_012052.pdf

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Page 6
________________ 652 जैन विद्या के आयाम खण्ड-६ आर्य सुहस्ति स्थूलीभद्र से दीक्षित हुए थे। पट्टावलियों के अनुसार नहीं है। क्योंकि इस आधार पर ई.पू.५२७ की परम्परागत मान्यता ई.पू. स्थूलिभद्र की दीक्षा वीरनिर्वाण सं. 146 में हुई थी और स्वर्गवास 467 की विद्वन्मान्य मान्यता दोनों ही सत्य सिद्ध नहीं होती है। अभिलेख वीरनिर्वाण 215 में हुआ था। इससे यह फलित होता है कि चन्द्रगुप्त एवं पट्टावली का समीकरण करने पर इससे वीरनिर्वाण ई.पू. 360 के मौर्य के राज्याभिषेक के 9 वर्ष पूर्व अन्तिम नन्द राजा (नव नन्द) के लगभग फलित होता है। इस अनिश्चितता का कारण आर्य मंगु के काल को राज्यकाल में वे दीक्षित हो चुके थे। यदि पट्टावली के अनुसार आर्य सुहस्ति लेकर विविध भ्रान्तियों की उपस्थिति है। की सर्व आयु 100 वर्ष और दीक्षा आयु 30 वर्ष मानें तो वे वीरनिर्वाण जहाँ तक आर्य नन्दिल का प्रश्न है, हमें उनके नाम का उल्लेख सं. 221 अर्थात् ई.पू. 246 (वीरनिर्वाण ई.पू. 467 मानने पर) में भी नन्दिसूत्र में मिलता है। नन्दिसूत्र में उनका उल्लेख आर्य मंगु के पश्चात् दीक्षित हुए हैं। इससे आर्य सुहस्ति की सम्प्रति से समकालिकता तो सिद्ध और आर्य नागहस्ति के पूर्व मिलता है।५० मथुरा के अभिलेखों में नन्दिक हो जाती है किन्तु उन्हें स्थूलीभद्र का हस्त-दीक्षित मानने में 6 वर्ष का (नन्दिल) का एक अभिलेख शक-संवत् 32 का है। दूसरे शक सं. 93 अन्तर आता है क्योंकि उनके दीक्षित होने के 6 वर्ष पूर्व ही वीरनिर्वाण के लेख में नाम स्पष्ट नहीं है, मात्र “न्दि" मिला है।५१ आर्य नन्दिल से 215 में स्थूलीभद्र का स्वर्गवास हो चुका था। सम्भावना यह भी हो का उल्लेख प्रबन्धकोश एवं कुछ प्राचीन पट्टावलियों में भी है-किन्तु कहीं सकती है कि सुहस्ति 30 वर्ष की आयु के स्थान पर 23-24 वर्ष में पर भी उनके समय का उल्लेख नहीं होने से इस अभिलेखीय साक्ष्य के ही दीक्षित हो गये हों। फिर भी यह सुनिश्चित है कि पट्टावलियों के उल्लेखों आधार पर महावीर के निर्वाणकाल का निर्धारण सम्भव नहीं है। के आधार पर आर्य सुहस्ति और सम्प्रति की समकालीनता वीरनिर्वाण अब हम नागहस्ति की ओर आते हैं- सामान्यतया सभी ई.पू. 467 पर ही सम्भव है। उसके पूर्व ई.पूर्व. 527 में अथवा उसके पट्टावलियों में आर्य वज्र का स्वर्गवास वीरनिर्वाण सं.५८४ में माना गया पश्चात् की किसी भी तिथि को महावीर का निर्वाण मानने पर यह है। आर्य वज्र के पश्चात् 13 वर्ष आर्य रक्षित, 20 वर्ष पुष्यमित्र और समकालीनता सम्भव नहीं है। 3 वर्ष वज्रसेन युगप्रधान रहे अर्थात् वीरनिर्वाण सं. 620 में वज्रसेन . इस प्रकार भद्रबाहु और स्थूलिभद्र की महापद्मनन्द और का स्वर्गवास हुआ। मेरुतुंग की विचारश्रेणी में इसके बाद आर्य निर्वाण चन्द्रगुप्त मौर्य से तथा आर्य सुहस्ती की सम्प्रति से समकालीनता 621 से 690 तक युगप्रधान रहे।५२ यदि मथुरा अभिलेख के हस्तहस्ति वीरनिर्वाण ई.पू. 467 मानने पर सिद्ध की जा सकती है। अन्य सभी ही नागहस्ति हों तो माधहस्ति के गुरु के रूप में उनका उल्लेख शक सं.५४ विकल्पों में इनकी समकालिकता सिद्ध नहीं होती है। अत: मेरी दृष्टि में के अभिलेख में मिलता है अर्थात् वे ई.सन् 132 के पूर्व हुए हैं। यदि महावीर का निर्वाण ई.पू. 467 मानना अधिक युक्तसंगत होगा। हम वीरनिर्वाण ई.पू. 467 मानते हैं तो उनका युग प्रधान काल ई. सन अब हम कुछ अभिलेखों के आधार पर भी महावीर के निर्वाण 154-223 आता है। अभिलेख उनके शिष्य को ई.सन् 132 में होने समय पर विचार करेंगे की सूचना देता है यद्यपि यह मानकर सन्तोष किया जा सकता है कि मथुरा के अभिलेखों४४ में उल्लेखित पाँच नामों में से नन्दिसूत्र युग प्रधान होने के 22 वर्ष पूर्व उन्होंने किसी को दीक्षित किया होगा। स्थविरावली४५ के आर्य मंगु, आर्य नन्दिल और आर्य हस्ति (हस्त यद्यपि इनकी सर्वायु 100 वर्ष मानने पर तब उनकी आयु मात्र 11 वर्ष हस्ति)- ये तीन नाम तथा कल्पसूत्र स्थविरावली४६ के आर्य कृष्ण और होगी और ऐसी स्थिति में उनके उपदेश से किसी का दीक्षित होना और आर्य वृद्ध ये दो नाम मिलते हैं। पट्टावलियों के अनुसार आर्य मंगु का उस दीक्षित शिष्य के द्वारा मूर्ति प्रतिष्ठा होना असम्भव सा लगता है। युग-प्रधान आचार्यकाल वीरनिर्वाण संवत् 451 से 470 तक माना गया किन्तु यदि हम परम्परागत मान्यता के आधार पर वीरनिर्वाण को शक है।४७ वीरनिर्वाण ई.पू. 467 मानने पर इनका काल ई.पू. 16 से ई० संवत् 605 पूर्व या ई. पू.५२७ मानते हैं तो पट्टावलीगत उल्लेखों और सन् 3 तक और वीरनिर्वाण ई.पू. 527 मानने पर इनका काल ई.पू. अभिलेखीय साक्ष्यों में संगति बैठ जाती है। इस आधार पर उनका युग 76 से ई.पू. 57 आता है। जबकि अभिलेखीय आधार पर इनका काल प्रधान काल शक सं.१६ से शक सं.८५ के बीच आता है और ऐसी शक सं. 52 (हुविष्क वर्ष 52) अर्थात् ई.सन् 130 आता है४८- अर्थात् स्थिति में शक सं.५४ में उनके किसी शिष्य के उपदेश से मूर्ति प्रतिष्ठा इनके पट्टावली और अभिलेख के काल में वीरनिर्वाण ई.पू. 527 मानने होना सम्भव है। यद्यपि 69 वर्ष तक उनका युग प्रधानकाल मानना सामान्य पर लगभग 200 वर्षों का अन्तर आता है और वीरनिर्वाण ई.प 467 मानने बुद्धि से युक्ति संगत नहीं लगता है। अत: नागहस्ति सम्बन्धी यह पर भी लगभग 127 वर्ष का अन्तर तो बना ही रहता है। अनेक पट्टावलियों अभिलेखीय साक्ष्य पट्टावली की सूचना को सत्य मानने पर महावीर का में आर्य मंगु का उल्लेख भी नहीं है। अत: उनके काल के सम्बन्ध में निर्वाण ई.पू.५२७ मानने के पक्ष में जाता है। पट्टावलीगत अवधारणा प्रामाणिक नहीं है। पुन: आर्य मंगु का नाम मात्र जिस पुनः मथुरा के एक अभिलेखयुक्त अंकन में आर्यकृष्ण का नाम नन्दीसूत्र स्थविरावली में है और यह स्थविरावली भी गुरु-शिष्य परम्परा की सहित अंकन पाया जाता है। यह अभिलेख शक संवत् 95 का है।५३ सूचक नहीं है। अत: बीच में कुछ नाम छूटने की सम्भावना है जिसकी पुष्टि यदि हम आर्यकृष्ण का समीकरण कल्पसूत्र स्थविरावली में शिवभूति के स्वयं मुनि कल्याणविजयजी ने भी की है।४९ इस प्रकार आर्य मंगु के बाद उल्लिखित आर्यकृष्ण से करते है५४ तो पट्टावलियों एवं अभिलेखीय साक्ष्य के आधार पर महावीर के निर्वाण काल का निर्धारण सम्भव विशेषावश्यक भाष्य के आधार पर इनका सत समय वीरनिर्वाण सं.६०९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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