Book Title: Swayambhukrut Ritthanemicharitra matthi Pacchis Deshya Shabdo
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf

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Page 6
________________ २३८ ] स्वयंभू कृत : 'रिट्ठणेमि चरिउ' माथी पञ्चीश देश्य शब्दो (बाल भीमनु शरीर आधातो वच्चे पण अक्षत रह्यतेने अनुलक्षीने) पुष्पदंतना महापुराणमां 'मोट्टियार' शब्द वपरायो छ। मारवाडी मां तथा उत्तर गुजरात नी बोली मां ते प्रचलित छ । _ 'मोट्टय' ने अधिकता दर्शक 'यर' प्रत्यय लागत ने 'मोट्टय्यर' उपर थी 'मोट्टयार' (जेम 'पिययर' उपर थी 'पियार') अने पछी यकारनी असर नीचे 'मोट्टियार' थयु छ । १६. लेहड 'लुब्ध' 'परणरवर संयर सिर लेहडु (६-६-४) 'युद्धमां शत्रु वीरोना शिर लेवा मां लुब्ध-तत्पर' (कृष्ण ना रथनु वर्णन) दे. ना. ७, २५ मां 'लेहड' नोंधायो छे, 'लिह' चाटवु साथे संबद्ध जणाय छ । २०. बंधणार 'बंधन' आखेहि दुवालिहिं पत्त तुहुं दिढ बंधणार निह मत्तगउ (१-११-४, ५) 'पावा उद्धत तोफानोथी तु मत्त बनेला हाथीना जेम दृढ बंधन पाम्यो छ । 'पउम चरिउ' मां पण या वपरायो छ : रिणग्गउ इंदइणं बंधणारु हणुवंत हो (५३-३-१०) 'इन्द्रजित बहार नास्व्यो-जाणे के हनुमान नु बंधन' । 'पउमचरिउ' ना शब्द कोशमां । तेनो 'बंधनकर्ता' अवो अर्थ करयो छे तेनी आधी शुद्धि थाय छ । 'को गुणेहि न पाविउ बंधणारू' ग्रेवी पंक्ति पण अपभ्रंश कायमः पांच्यानु स्मरण छ । अर्थ छ 'गुणेथी कोण बंधन पामतु नथी ?' अहीं गुण उपर श्लेष छ । २१. वालाहिय धरो, हृद' जउण वालाहिय हो अगाहहो रणंद गावे लहु कमलई प्राणहि (५-१३-२; ३) 'यमुनाना अगाध धारा मांथी हे नंदगोप सत्वर कमलो लावी आप' । 'पउमचरिउ' १४-१०-५ मां नर्मदा नदी ने 'वालाहिप' निद्रा थी सूतेली कही छे । त्यां कदाच आज अर्थ छ ।' २२. विय्याले 'वच्चे', 'वचाल' तिहि तेहेने काले पडिउवयार भावगयउ सेण्णहे विप्याले मिलियउ हरि कुल देवयउ (७-११-धत्ता) 'ते समये प्रत्युपसर करवानी वृत्तिवाली कृष्ण नी कुलदेवताओं सैन्यनी वच्चे आवीने मली' । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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