Book Title: Swayambhu Stotram
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 200
________________ स्तवन-छन्दसूची में लघु तथा विषमचरणों (१,३) में गुरु होता है। और जिसके समचरणों में चार अक्षरोंके बाद 'जगण' हो उसे पथ्यावक्त्र अनुष्टुप' कहते हैं। नगण, नगण. रगण और लघु-गुरुके क्रमको लिये हुए एकादशवणोत्मक चरणवृत्तको नाम 'सुभद्रिका' है और नगण, जगण,जगण, रगणके क्रमको लिए हुए द्वादशाक्षरात्मक चरणवृत्तका नाम 'मालती' है। इन दोनोंके चरण-मिश्रणसे बना हुआ छन्द 'सुभद्रिका-मालती-मिश्न - यमक' कहा जाता है। जिसके प्रत्येक चरणमें १६ मात्राएँ और उनमें हवीं तथा १२वीं मात्रा लघु हों उसे 'वानवासिका' छन्द कहते हैं। जिसके प्रथम, तृतीय (विषम) चरणोंमें १४ और द्वितीय, चतुर्थ (सम) चरणोंमें १६ मात्राएँ होती हैं तथा विषम चरणोंमें ६मात्राओंके और समचरणोंमें ८ मात्राओंके बाद क्रमश: 'रगण' तथा १६ वानवासिका वतालीय

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