Book Title: Swarup Deshna Vimarsh
Author(s): Vishuddhsagar
Publisher: Akhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti

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Page 13
________________ मनोभावना -एड. राजेन्द्र कुमार जैन, आगरा परम पूज्य गणाचार्य श्री 108 विराग सागर जी महाराज के परम शिष्य परम पूज्य आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर जी महाराज जो श्रमण संस्कृति के सम्प्रति साधकों में पंचाचार-परायण, शुद्धात्म-ध्यानी, स्वात्म-साधना के सजग प्रहरी, आलौकिक व्यक्तित्व एवं कृतित्त्व के धनी, आगमोक्त श्रमण-चर्या पालक, समयसार के मूर्त रूप, निष्पह भावनाओं से ओतप्रोत,तीव्राध्यात्मिक-अभिरूचियों, वीतराग-परिणतियों एवं वात्सल्यमयी प्रवृत्तियों से परिपूरित, चलते-फिरते चैतन्य तीर्थ श्रेष्ठ, प्रातः स्मरणीय अध्यात्मयोगी, सिद्धांत तत्वेत्ता, तार्किक शिरोमणी का ससंघ वर्षायोग उत्तर प्रदेश के महानगर जो पं. बनारसीदास, पं. द्यानतराय जी, पं.दौलतरामजी व पं. भूधरदासजी आदि की नगरी आगरा में वर्ष 2012 में हुआ। आगरा का दिगम्बर जैन समाज धन्य हो गया। आचार्य श्री का प्रथम दिन लघु उद्बोधन श्री 1008 शान्तिनाथ दि. जैन जिनालय, हरीपर्वत पर श्रवण कर श्रीसंघ के दर्शन कर मैं इतना प्रभावित हुआ कि नित्य दर्शन करने की भावना बना ली। कुछ दिन उपरांत पं. वीरेन्द्र शास्त्री मुझे आचार्य श्री की समयसार की नित्य वाचना में छीपीटोला ले गये। वहाँ पर आचार्य श्री का समयसार पर मूर्त रूप व तार्किक विश्लेषण सरल भाषा में सुना तथा वहाँ उपस्थित धर्मनिष्ठ एवं प्रबुद्ध लोगों को यह कहते हुए भी सुना कि हम लोग समयसार से बचते थे परन्तु आचार्य श्री के सानिध्य में हम लोगों का समयसार का वास्तव में सरलसार के रूप में अध्ययन हो रहा है। यह आचार्य श्री की विद्वता का परिचायक है।मैं भी स्वयं समयसार की वाचना में जाता रहा। नगर के प्राचीन एवं यमुना तलहटी पर स्थित श्री पारसनाथ दिगम्बर जैन बड़ा मन्दिर व धर्मशाला, बेलनगंज में आचार्य श्री का ससंघ आगमन हुआ। यद्यपि कालांतर में यहाँ चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागरजी, आचार्य श्री देशभूषणजी, आचार्य श्री महावीरकीर्ति जी, आ.श्री विमलसागर जी, आ.विद्यानंद जी, आ. तपस्वी सम्राट सन्मति सागर जी, आ. विद्यासागर जी, आ. कुन्थुसागर जी, आचार्य संभवसागरजी एवं अन्य सभी दिगम्बर जैन संघों का प्रवास हो चुका है। वर्तमान में पुराने शहर वासियों का नये क्षेत्रों में पलायन करने से व्यवस्थाओं के निर्वहन में कठिनाइयाँ आने लगी मैं स्वयं व मेरे साथीगण इस बात को लेकर चिंतित थे कि इतने बड़े संघ की व्यवस्था कैसे होगी लेकिन आचार्य श्री के श्री चरणों के प्रभाव से व सभी धर्म प्रेमी बन्धुओं के सहयोग से सभी कार्य गौरवपूर्ण सम्पन्न हुए। महत्वपूर्ण है कि आचार्य श्री के प्रवास के दौरान स्वयं 19 परिवारों के द्वारा चर्या Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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