Book Title: Swadhyaya Is Par se Us Par Jane ki Nav Author(s): Kusum Jain Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf View full book textPage 2
________________ • श्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. · चाहती है । वह 'जीवन' के चरम सत्य की खोज है । उसके लिए आकर्षण और एकाग्रता चाहिये | २११ 'स्वाध्याय' भी इसी एकाग्रता, समर्पण भाव, निरंतर कर्म और चिंतन के खजाने की कुंजी है - जिसे प्राचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज ने हमें प्रदान किया । जिसे जो चाहे अपना सकता है । और जीवन के 'उस पार' का रहस्य जान सकता है । जिस तरह मंदिर में भगवान की मूरत का इतना ही महत्त्व है कि उसके माध्यम से आप मूरत के 'उस पार' जा सकें। इससे अधिक कुछ नहीं और जो केवल मूरत में ही अटके रह जाते हैं - वे केवल 'इसी पार' रुक जाते हैं । 'उस पार' नहीं जा पाते । 'स्वाध्याय' जीवन के 'उस पार' जाने वाली नाव है - जिसके माध्यम से हम 'इस पार' से 'उस पार' जा सकते हैं । हम एक बहुत अच्छे कवि और वक्ता को जानते हैं जो सरस्वती पुत्र माने जाते हैं और वाणी-पुत्र के नाम से प्रख्यात हैं । जिन्होंने धरती और आकाश के, प्यार और सौंदर्य के गीत गाये हैं, दर्द और प्रसुत्रों से जिन्होंने कविता का श्रृंगार किया है और विकास के दर्द को जिन्होंने भोगा है । व्यस्त और निरन्तर वे प्रशासकीय कार्यों में अति व्यस्तता के कारण वे साहित्य के अपने चिर-परिचित क्षेत्र से कटने लगे और पुनरुक्ति उनके भाषणों का हिस्सा बनने लगी । लोग जब भी सुनते कि आज अमुक विषय पर उनका भाषण होने वाला है - तो ऐसे सज्जन भी मिल जातेजो टेपरिकार्डर की तरह उनका भाषण सुना सकते थे.... और धीरे-धीरे यह बात उन तक भी पहुँची.... और उन्होंने जाना कि अपने भाषणों का आकर्षण क्यों समाप्त होता जा रहा है । या तो एक जमाना था, जब उनके भाषण सुनने के लिए छात्र दूसरी कक्षाएँ छोड़कर आते थे और अब 'पुनरावृति' ने सौंदर्य और प्रीत के उस कवि के भाषणों को 'बोरियत' में बदल दिया है । Jain Educationa International तब कहते हैं कि उन्होंने 'स्वाध्याय' को अपनी पूजा बना डाला । यह बात चारों ओर फैल गई कि वे प्रति दिन प्रातःकाल 'तीन घण्टे' पूजा में बिताते हैं । तब वे किसी से नहीं मिलते और यह तीन घण्टे की पूजा और कुछ नहीं केवल 'स्वाध्याय' था जिसमें उन्होंने आगम, वेद, पुराण, उपनिषद् प्रौर ऋषि-मुनियों के अनुभूत विचारों को मथ डाला। आज वे महाशय पुनः ऊँचाई पर हैं - जिन्हें सुनने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती है । यह और कुछ नहीं 'स्वाध्याय' का प्रताप है । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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