Book Title: Suyagadanga Sutram Part_1
Author(s): Buddhisagar Gani
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 12
________________ एयगडा सत्र दीपिकान्वितम् । ___ अहँ नमः । वन्दे वीरं सुखोदधिम् । * अ-भि - म - त। निर्ग्रन्थ-प्रवचनमें जैन दर्शनकी सांस्कृतिक परम्परा अक्षुण्णरूपसे अङ्कित मिलती है। निम्रन्थ-प्रवचनको जैनसाहित्यरूपसे माना जाता है। मौलिक जैन-साहित्यरूपमें अंग-उपांग-आवश्यक आदि सूत्रोंको “आगम" नामसे प्रसिद्धि प्राप्त है। ___ अंग सूत्रों में पहिला श्रीआचारांग है, तो दूसरा हमारे हाथमें रहा यह श्रीसूयगडांग सूत्र है। इसमें दो श्रुतस्कन्ध हैं, और तेईस अध्ययन । इस पर चौदह पूर्वधारी श्रुतकेवली श्रीभद्रबाहुस्वामीजीने नियुक्तिकी रचना की है, और श्रीशीलांकसूरिजी महाराजने विस्तृत और विशद संस्कृत व्याख्या की है । जो श्रीआगमोदय समितिद्वारा प्रकाशित अभी अप्राप्य है। इसमें अन्यान्य दर्शनोंके सिद्धांतोंका सुविशद विश्लेषण हुआ दीखता है, जो जैनदर्शनके अभ्यासियोंके लिये अद्भुत हैं। बौद्ध पिटक ग्रन्थोंकी भाषा जहां पाली होती है, वहां जैनआगमोंकी भाषा अर्धमागधी । इसमें बिहार-बंगालकी प्राकृत भाषाका मूल रूप प्रचुर मात्रामें मिलता है। साधारण जन जो अर्धमागधीको नहीं जानते, वे उसे (अर्धमागधीको) प्राकृत ही बता देते हैं। पर ऐसा एकान्तिक नहीं है। कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्य महाराज सिद्धहैम अष्टमाध्यायके चौथे. पादमें सूत्र नंबर २८७ में स्वोपज्ञ वृत्तिमें "पोराणमद्धमागहमासानिययं सुत्तं"-अर्थात् प्राचीन सूत्र अर्धमागधी भाषामें नियत-निरूपित हैं। ऐसा सूचन करते हुए वे ही वहीं "प्रायोऽस्यैव विधानात"-लिख कर मागधीके समान ही अर्धमागधी Jain Education Intel For Private Personal Use Only Tww.jainelibrary.org

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