Book Title: Sutrakritanga Sutra Part 02
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 364
________________ श्रद्धा, ज्ञान एवं चारित्र का शुद्धिकारक एवं वृद्धिकारक यह ग्रन्थ है। स्वपरसमयवक्तव्यता, स्त्री-अधिकार, नरक-विभक्ति जैसे अध्ययन इसके अत्यन्त मननीय है। संयम जीवन के लिए अत्यन्त उपकारी होने से सबके लिए यह ग्रन्थ उपादेय बन जाता है। इसलिए योग्य को इस ग्रन्थ का अध्ययनअध्यापन अवश्य करना-कराना चाहिए। 'अब हमारा यह कर्तव्य बनता है कि इसका पान कर अपनी आत्मा को निर्मल बनाए तो ही हमने इन पूर्व पुरुषों के इस पुरुषार्थ को सफल बनाया है। ऐसा माना जाएगा। तत्त्वज्ञान के बिना मोक्ष मार्ग में अग्रेसरता अशक्य है। अतः ज्ञान-दीप हृदय-घट में प्रकट करने के लिए इस ग्रन्थ का परिशीलन करे। MULTY GRAPHICS

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