Book Title: Surajprakas Part 02 Author(s): Sitaram Lalas Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan JodhpurPage 10
________________ ग्रन्थ-सारांश चतुर्थ महाराजा गजसंह महाराजकुमार गजसिंहको जोधपुरमें यह संदेश प्राप्त हुआ कि उनके पिता सवाई राजा सूरसिंह दक्षिण में रोग ग्रसित हो गये हैं तो वे जोधपुरकी शासन-व्यवस्थाका भार अपने विश्वासपात्र मंत्रियोंको सौंप कर तुरन्त ही दक्षिण की ओर रवाना हो गये। उनके वहां पहुँचनेके पूर्व ही सवाई राजा सूरसिंहका देहावसान हो गया था । इस घटना के पश्चात् बादशाहकी आज्ञा से दक्षिण में ही बुरहानपुरमें महाराजकुमार गजसिंह राज्याभिषेकका दस्तूर खाँनखाँनाके पुत्र दौरावखांने किया इस अवसर पर दौराबखाँने इनकी कमरमें तलवार बांधी और बादशाहकी थोर से भेजे हुए उपहार भेंट किये। बादशाहकी प्रोर से इस प्रकार सम्मानित होने पर दक्षिण में बादशाह के सभी विपक्षी महाराजा गजसिंहके शौर्य और पराक्रम से प्रातंकित हो गये । राज्याभिषेक के कुछ ही दिन पश्चात् महाराजा गजसिंहने दक्षिण में महकर नामक स्थान पर श्रमरचंपूकी बहुत बड़ी सेनाका मुकाबिला किया। भयंकर युद्ध हुआ । महाराजा गजसिंहने बड़ी वीरता दिखाई, अमरचंपू पराजित हो गया। महाराजाने बादशाही राज्यका खूब विस्तार किया । दक्षिणके खिड़कीगढ़, गोलकुंडा, आसेर, सितारा श्रादिको विजय कर बादशाही राज्य में मिला दिया । बादशाह इन पर बहुत प्रसन्न हुआ और इन्हें 'दळथंभण' (न) की उपाधि से विभूषित किया। इसके अतिरिक्त कई छोटे बड़े प्रान्त दे कर इनके राज्यकी वृद्धि की । इसके पश्चात् महाराजा गजसिंह कुछ समय के लिये अपने राज्य मारवाड़ में लौट आये । · Jain Education International तत्पश्चात् शाहजादा खुर्रम किसी घरेलू घटनाके कारण अपने भावी भाग्यके विषय में संदेह करने लगा। उसे यह भय हो गया कि बादशाह जहांगीर नूरजहां के हाथ की कठपुतली है और वह परवेजको ही जहांगीर के are बादशाह रूपमें दिल्ली के सिंहासन पर प्रारूढ़ करना चाहती है । इसके अतिरिक्त महाराजा गजसिंहकी असीम शक्तिके कारण दक्षिण में भी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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