Book Title: Subhadra Sati Chatushpadika
Author(s): Kanubhai V Sheth
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 5
________________ तेगि चाचरि वाजिउ डागरउ, चंपा पउलि क पाछी करउ करउ कोइ अम्हारउ काजो, नरवइ भणड दिवउ अधराजो. 32. सुभदा जइ छी त उ डागरउ, नरवइ राजु धणे रउ कर उ, अवर देसि जले धंधोले, सोल - प्रभावि उघाडीस पउले, धरि थकी सासू ककळरइ (?) विजउ पवाडउ सुभद्रा करइ, अउगी आछु म बोलिसि माए, दुह वयणिहिं मह हियइ दाहो. सात - वरीसी से डिप वाला, सूतु कं तावण लागी ताळा, काचइ तारुणि वांधी चाळणी, सुभदा कूवा ऊपरि वूणी(?) चावणियह जउ पाणिउ धरेए, तिन्नि पउलि ऊघाडी करए, लक्खण कवित न लंगी घडी, सुभदा सतहिं पउलि उघडी. तक्खणि राउ राळयात भयउ, तिणि वेगिहि आणिउ हाथियउ, गायवर ऊपरि ठवियउ पाउं, आपण पालउ चलियउं रउ. 37. स भदा सती बोलइ तिहि ठाए, चउथी पउलि उघाडउ काए, राउ बलइ स भदा संभलइ, अवर महासति तह विन तोलइ. मे घाडं बर धरि यहि छत्त, आगइ नायत जादि ति पत्त, करहि कल्याणु भाट नगारी, मूध ताल तसु सुभदा पड़ी (?) मिलिय सवासिणि मंगल गायहि. धवल दिपंता वकया -जाहि हू य उछ व नगरी मझारे, सुभदा पंहुती सी हदु वारे 40. सुभदा मंदिरि पहती जाव, सास सस र उ हरखि उ ताव, जिणवर धंम करहु ए-कवित्ते, जिण-सासणु हुइ पर जयवंते. पढहि गुणहि जे जिणहरि दं हिं, ते नियइ संसार तरे हि म भटा-सती-- चरितु संभलहि सिध्धि सुक्खु लीलाइ में लहहिं. [82] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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