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धर्मकृत सुभद्रा - सती - चतुष्पदिका
( अनुमाने ई.स. १२९० नी आसपास)
प्रास्ताविक
प्राचीन - मध्यकालीन गुजराती साहित्यमां विकसेला अनेक काव्यप्रकारोमा चतुष्पदिका (चांपाई) पण एक नोंधपात्र प्रकार छे. चतुष्पदिका - चोपाई घणीवार 'रास प्रकारना पर्याय तरीके पण उल्लेख पाम्यो छे. नेमिनाथ चतुष्पदिका (ई.स. १ ए गुजराती साहित्यनी प्रथम चतुष्पदिका कृति छे. अत्रे, 'धर्म' कविनी कृति 'सुभद्रा सती चतुष्पदिकां पपरिचय प्रकाशित करी छे.
प्रत परिचय अने संपादनपध्थति
प्रस्तुत कृतिनुं संपादन प्राप्त एकमात्र प्रत परथी करवामां आव्युं छे. स्व. अगरचंद नाहटाना (पोथी क्रमांक २१८) संग्रहमा रहेली एक प्राचीन गुटका प्रकारनी हस्तप्रतमां ते पत्र क्रमांक १८८ - १९१ पर प्रस्तुत कृति उतारेली छे. प्रतनो पाठ कायम राख्यो छे. क्वचित सुधारो के वधारो ( ) कौंसमां मुक्यो छे.
काव्यना कर्ता : धर्ममुनि
प्रस्तुत कृतिना कर्ता धर्ममुनि होवानुं काव्यना अंते मळता उल्लेख परथी कहीं शकाय. सुभद्र मंदिर पहुती जाव, सासू ससूरऊ हरखिउ ताव, जिणवर धंम करहु ए कवित्ते, जिनशासण हुई पर जयवंतो ४०
कनुभाई शेठ
धर्मे रचेली अन्य बे कृतिओ 'स्थूलभदरास अने 'जंबूस्वामिचरिय' मळे छे. ते आ ज कविनी रचना होय तेम लागे छे. केम के आ त्रणे कृतिओ एक हस्तप्रतमां सचवायेली छे. जो के अत्रे नोंधवं घटे के आ कृतिनी भाषा एटली प्राचीन रही थीं.
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जं फलु होइ गया गिरनारे, जं फलु दीन्हइ सोना भारे, जं फलु लखि नवकारिहि तं फलु सुभद्रा - चरितिं सुणिहिं
१.
१. प्राचीन गूर्जर काव्य संचय. संपा. ह. चु भायाणी अने अगरचंद नाहटा. २. प्राचीन गूर्जर काव्य संग्रह. संपा. सी. डी. दलाल
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दियइ घणु छह दरिसण श्रवइ, सुभग महासइ लाखण कवइ, पहिली सरसति जीभह लाग, बंधु तणा तुहु दखउं मागा.
तास पसाइ कवित हइ धणइ, भणई चरित स भदा तणउ, च पा-नयरि कहउँ विचारो, स भद्र-महासइ निवसई नारे.
धरम - काजि जस हरखित चीतो, भवियह निसणउ कउनिगवीतो ? हाथ पाय पखालइ अंगी, तहिणा धरम ह नाही भं गो.
ने मिसरी-सी दे हुरी जाइ, नीका कु सु मह पाछी भरइ, जिणु आराहइ चोखइ मनि, एक वार सो भक्खइ अन्नु
अंबिल निवी करइ उपवास, तप तपेइ सा बारह मास, श्रावकनी छइ उत्तम जाति, जइसी निम्मल पुन्निम-राति
महे सरी घर परिणिय सा ए, पी हरवाटहं धरम करे ए, सासु य पभणइ संभलि वहुए, अवर धरमु तु दु छंडहि सहुए.
अम्ह धरि देउ नारायण अस्थि, वहुडिय जाह म पारसनाथे, सुभदा पभणइ बे कर जोडि, सुर आवहि ते तीसउ कोडि.
८. संभलि सासु अक्खउ एहो, जिणवर समउ न अच्छइ देओ, ते उ कोविहि सासू परजलई, जाणहु घिउ वइस करि ढलइ
मणिहि माहि तिनि धरियड रोस, एहइ कोवि चढावि म दोस्, मुणिवर एक संसारह भग्गहु, अति धणु तापु तपला लग्गउ.
१०. कठइ देह तसु मनि नवि ढलए, वीस विस्वा तसु संजम पलए, पंचेन्द्रिय तिणि मलियउ मान, काया कष्ट किधउ अप्पाणु.
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रानि हि जाइवि कवसग देइ, मासह पाख ह सो पारे इ. x x x x x x x x x x x x x x x x x
१२. वाउ वाइ तह कोरणु धणउ, मुणिवर अंगहि पडियइ तिणउ, सोनवि हस्थिहिं दे ठउ कर ए, खरउ दुहेलउ आंखित हझूर ए.
पूरिय अवधि चलिउ तहि ठाए, कवणह नयरिय विहरण जाए, अवरि न गइयउ चंपा पइठउ, अंखहि झरंती सुभदा दीठउ.
सुभदा मणइ माह चिंतिती, आविउ मुणिवस तह विहरती, वडिय भगति कीयउ विहरणउ, सुभदा अंखहि झडपिउ तिणउं'
सासू हू ती जीमत बै ठी, त्रिणं उ लिपति स भदा दीठी, विकलपु वसियउ मन्नह मां हिं, वहुडी रहिसिम पीहरि जाहि
सुभद्रा ए भणई संभलि माए, नीकर वयण कि सहणउ जाए. कवणि काजि तम्हि कोन्हउ रोसो, अम्हह काई चढावि दोसो
वंदइ दे व गुणइ नवकारा, नीर गलं ती भन्नि वे वारा, महसइ महसइ कहइ न आए, पाच्छिय लोवण दे हरि जाए.
१८. अम्हि दीठउ तुम्हारउ चरिउ, धमियउ सोनउ फूकह हरिउ, त उ महसइ निंदइ अप्पाणु, ता किवे पहेविदि ऊगेइ भाण.
सुभद्रा भणई जइ वरतइ धंमु, पाणिउ अन्नु अनेरइ जम्मु. स भदा भणई न पीहरि जाउं, महरि चडाविउ एवड़ नाउ.
सासू ससरासु न मिले हो, भणइ महासइ मई सु कहे हो, खूणो भी तरि छइ लंघती, सास नणदउला लजंती.
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सुभद्रा हूया तिन्नि उपवास, गुणि नवकारह लकळ सहस्स सासणे देवति आई य जक्ख, अंवि कदे वी ह इय पर तक्ख.
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टूक्खहं रयणि छइ अधराति, सासण दिवि अनु सुभद्रावाति, चउविह धम्मह हउं सक्ताई, महसइ चिंत म करिजहु काई
२३. सासणदेवि भणिउ सत तोलि, चंपा ढाकिसु चारिउ पउलि, रह नरिंद नाही पाडि, मइ दीन्ही को सकइ उघाडि.
सासणदे वि ति चडिय विमाणि, जाइ देवि आपणइ सुठाणि, स भद भणई दीठ जंजालो, एक वार जइ उतरइ आलो.
२५. प्रह विहसी जउ हवउ रोलो, नयरि तणिय न उघडहि पउलं, ते नवि प्राणिहि पाछी सरहिं, आरडु भरे डु गाविउ करवि.
सासणदेवि ति कहिउ विचारी, सूत कंताविज कोइ कुमारी, कूवह जल चालणि काढिजे, तिन्नि पऊलि जाइवि छांटिजे.
गयउ वहावउ वे गिहि रायवाला रो विहिं चंपा माहिं, पउलि न उघडहि हुयउ विहाणु, जे वेगि तोलिवि जोयउ पाणु.
२८. तक्खणि नरवइ चडिउ त खारे, महंता ग पति य वात विचारे, धूप कडछू पले करि धरिउंहू, दे वत्ति दाणव पाछा करहू.
हो वे दियते वेदि ते डाव ह, नयरी माहइ होमू करावउ, जव तिल धीपइ सरिस होमु, जाब न लग्गहिं गयणिहिं धूम.
ते खणि महंत उ लागउ भणउ, नाही पाड़ को होमहं तणउं, बुध्धि अने री कीजइ काए, पडहु दीयावहु नगरह माहे.
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________________ तेगि चाचरि वाजिउ डागरउ, चंपा पउलि क पाछी करउ करउ कोइ अम्हारउ काजो, नरवइ भणड दिवउ अधराजो. 32. सुभदा जइ छी त उ डागरउ, नरवइ राजु धणे रउ कर उ, अवर देसि जले धंधोले, सोल - प्रभावि उघाडीस पउले, धरि थकी सासू ककळरइ (?) विजउ पवाडउ सुभद्रा करइ, अउगी आछु म बोलिसि माए, दुह वयणिहिं मह हियइ दाहो. सात - वरीसी से डिप वाला, सूतु कं तावण लागी ताळा, काचइ तारुणि वांधी चाळणी, सुभदा कूवा ऊपरि वूणी(?) चावणियह जउ पाणिउ धरेए, तिन्नि पउलि ऊघाडी करए, लक्खण कवित न लंगी घडी, सुभदा सतहिं पउलि उघडी. तक्खणि राउ राळयात भयउ, तिणि वेगिहि आणिउ हाथियउ, गायवर ऊपरि ठवियउ पाउं, आपण पालउ चलियउं रउ. 37. स भदा सती बोलइ तिहि ठाए, चउथी पउलि उघाडउ काए, राउ बलइ स भदा संभलइ, अवर महासति तह विन तोलइ. मे घाडं बर धरि यहि छत्त, आगइ नायत जादि ति पत्त, करहि कल्याणु भाट नगारी, मूध ताल तसु सुभदा पड़ी (?) मिलिय सवासिणि मंगल गायहि. धवल दिपंता वकया -जाहि हू य उछ व नगरी मझारे, सुभदा पंहुती सी हदु वारे 40. सुभदा मंदिरि पहती जाव, सास सस र उ हरखि उ ताव, जिणवर धंम करहु ए-कवित्ते, जिण-सासणु हुइ पर जयवंते. पढहि गुणहि जे जिणहरि दं हिं, ते नियइ संसार तरे हि म भटा-सती-- चरितु संभलहि सिध्धि सुक्खु लीलाइ में लहहिं. [82]