Book Title: Stutividya
Author(s): Samantbhadracharya, 
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 7
________________ स्तुतिविद्या के अनुवादके साथ काशीसे प्रकाशित किया था, जो आजकल प्रायः अप्राप्य है । उस संस्करणसे वर्तमान संस्करण अनुवादके अलावा पाठ-शुद्धि, प्रस्तावना, पद्यानुक्रम और चित्रालंकारों के स्पष्टीकरण आदिकी दृष्टिसे अपनी खास विशेषता रखता है और अधिक उपयोगी बन गया है। अन्तमें मुझे यह प्रकट करते हुए बड़ा ही खेद होता है कि प्रफरीडिंगमें बहुत कुछ सावधानो रक्खे जानेपर भी परावीनताके अभिशापरूप तीन पेजके करीबका शुद्धिपत्र लगाना पड़ा है। अस्तु ; कुछ प्रकाशक अपनी छपाईके दोषको छिपानेके लिये साथमें शुद्धिपत्रका लगाना पसंद नहीं करते जबकि उनके प्रकाशनोंमें बहुत कुछ अशुद्धियाँ होती हैं परन्तु अपनेको वैसा करके दूसरोंको अंधेरेमें रखना इष्ट नहीं है और इसीसे 'अशुद्धि-संशोधन'का साथमें लगाना आवश्यक समझा गया है। देहली (दरियागंज) ता० २३ जुलाई १९५० जुगलकिशोर मुख़्तार अधिष्ठाता 'वीरसेवामन्दिर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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