Book Title: Sramana 2010 01
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 4
________________ सम्पादकीय श्रमण अक्टूबर-दिसम्बर २००९, जनवरी-मार्च २०१० का संयुक्तांक सम्माननीय पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। पूर्व की भाँति इस अंक में भी जैन दर्शन, साहित्य, आचार, इतिहास एवं कला से सम्बद्ध आलेखों को स्थान दिया गया है। प्रस्तुत अंक के हिन्दी खण्ड में जैन दर्शन, जैन साहित्य, जैन आचार एवं जैन इतिहास पक्ष से आलेख प्रकाशित किये गये हैं। अंग्रेजी खण्ड में जैन योग, एवं कलाइतिहास से सम्बद्ध आलेख प्रस्तुत हैं। हमारा प्रयास यही रहता है कि श्रमण का प्रत्येक अंक पिछले अंकों की तुलना में हर दृष्टि से बेहतर हो और उसमें प्रकाशित हो रहे सभी आलेख शुद्ध रूप में मुद्रित हों। इस अंक के साथ हम अपने सम्माननीय पाठकों के लिए जैन कथा साहित्य में विशिष्ट स्थान रखने वाली प्राकृत भाषा में निबद्ध श्रीमद् धनेश्वरमुनि विरचित 'सुरसुंदरीचरिअं' का आठवाँ परिच्छेद भी प्रकाशित कर रहे हैं जो गणिवर्य श्री विश्रुतयशविजयजी म.सा. द्वारा की गयी संस्कृत छाया, गुजराती अर्थ और हिन्दी अनुवाद से युक्त है। यह महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हमें पूज्य आचार्य विजय राजयशसूरीश्वर जी म.सा. के सौजन्य से प्राप्त हुआ है जिसके लिए हम उनके आभारी हैं। सुरसुंदरीचरिअं के आगे के परिच्छोदों की संस्कृत छाया, गुजराती अर्थ और हिन्दी अनुवाद भी हमें जैसे-जैसे पूज्य विश्रुतयश विजय जी म.सा. से प्राप्त होते जायेंगे, उसी क्रम से हम धारावाहिक रूप में श्रमण में प्रकाशित करते रहेंगे। ___ सुधी पाठकों से निवेदन है कि वे अपने अमूल्य विचारों/ आलोचनाओं से हमें अवगत कराने की कृपा करें ताकि 'श्रमण' को और अधिक समुन्नत बनाया जा सके। सम्पादक

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