Book Title: Sramana 2010 01
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 10
________________ ध्वनिवर्धक का प्रश्न हल क्यों नहीं होता? क्या विद्युत अग्नि है? : ३ है। वे भी ध्वनिवर्धक प्रश्न पर अपने को शुद्ध, संयमी प्रमाणित करने के लिए पाँच सवारों में अपने आपको गिनाने लगते हैं। जब किसी बाहर की साधारण बात को शुद्धाचार का मापदण्ड घोषित कर दिया जाता है, तो प्रायः ऐसा ही होता है। इस तरह की स्थिति में ऐसे लोगों की खूब बन आती है, बड़ी सस्ती पूजा-प्रतिष्ठा मिल जाती है। ये लोग संयम की रक्षा के दर्दीले नारे लगाते हैं, और भावुक जनता को धर्म के नाम पर आसानी से बेवकूफ बनाते हैं। __ तथाकथित अहिंसाव्रती संयमी मुनिराजों के काष्ठ पात्रों के लिए हरे वृक्ष कट सकते हैं। साधुओं के निमित्त खरीदे हुए पात्र आवश्यकतानुसार सामान्य रूप से दीक्षा के बहाने ग्रहण किए जा सकते हैं। शिष्यों को अध्ययन कराने के लिए पंडितों के रूप में निजी नौकर रखे जा सकते हैं। पत्र-व्यवहार आदि के लिए स्थायी नौकर के रूप में पी.ए. या क्लर्क की नियुक्तियाँ भी हो सकती हैं। अपने या दिवंगत गुरुजनों के नाम पर संस्थाएँ खड़ी की जा सकती हैं और उनके लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपने प्रभाव का उपयोग कर लाखों की संपत्ति भी जमा की जा सकती है। तार, टेलीफोन, पत्र-व्यवहार हो सकता है। अर्थहीन पुस्तकें छप सकती हैं। हजारों दर्शनार्थी इकट्ठे किए जा सकते हैं। शिष्य बनाने के लिए बड़ी रकमें दिलाई जा सकती हैं। दिनभर एक-दूसरे की झूठीबुराई का बाजार गर्म रख सकते हैं। जाने दीजिए-और भी बहुत कुछ ऐसीवैसी बातें होती रहती हैं। मेरे महानुभावों का इन सबमें तो संयम नहीं जाता, संयम जाता है केवल ध्वनिवर्धक से और इसका दर्द एक बहुत बड़ा दर्द है, उनके मन में। संयम का खटका जो ठहरा। कुछ गृहस्थ भी ऐसे हैं, जिनकी मानसिक स्थिति बड़ी विचित्र है। दुकानें चलती हैं, कारखाने धड़ल्ले से चलाये जाते हैं, घर पर बाल-बच्चों की भीड़ है और इसके लिए चौका-चूल्हा-चक्की सब चलता है। रेल, मोटर, तांगा, रिक्शा, जहाज सब सवारियों का उपयोग होता है। क्या करते हैं, क्या बोलते हैं, कोई खास विचार नहीं। परन्तु भाषण देने खड़े होते हैं तो ध्वनिवर्धक सामने आते ही बिदक जाते हैं। वहाँ उनका श्रावकत्व सुदूर आसमान पर चढ़ जाता है। कुछ नहीं, विचार शून्य आचार एक तमाशा बन गया है। जैन परम्परा का इससे बढ़कर और क्या उपहास होगा? अब जनता सब समझने लगी है, कम से कम शिक्षित तो समझने लगे हैं। ये संयम के नाम पर दम्भ के प्रदर्शन कुछ लोगों को ही भुलावे में डाल सकते हैं। खेद है, ध्वनिवर्धक के साधारण से प्रश्न को कितना तूल दे दिया गया है। यह तो एक बड़ा महाभारत ही हो गया। सत्य स्थिति क्या है, इधर कुछ

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