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श्रमण:
एवं तब से मृत्युपर्यन्त व्यवस्थापक पद पर नियुक्त रहे। आपका पारदर्शी व्यक्तित्व क्रोधमानमायादि कषायों से कोसों दूर था।
आप तीन पत्रों - Jain Journal ( English ), 'श्रमण' ( बंगला ) एवं 'तिथ्ययर' (हिन्दी) के सफल सम्पादक थे। साहित्य की प्रत्येक विधाओं पर आपने कलम उठाई, फिर भी आपका कथाशिल्प बेजोड़ था। अद्भुत था आपके प्राकृतिक सौन्दर्य का सूक्ष्मबोध एवं विलक्षण था आपका रंग समन्वय। साम्प्रदायिकता, के आग्रह से मुक्त यथार्थ चिन्तनपरक आपका साहित्य सृजन सदा अविस्मरणीय रहेगा। सत्य को अनावृत करने की साधना में ही आपने समस्त जीवन व्यतीत कर उस पथ को प्रशस्त किया जिस पर चलकर जैनत्व को प्राप्त किया जा सकता है। जैन विधा का हर अध्येता अपने पुरोधा के रूप में सदैव आपका स्मरण करता रहेगा।
पार्श्वनाथ विद्यापीठ परिवार
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