Book Title: Sopara Vignaptika
Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ ऑगस्ट २०११ तीरथवर सोपारडं जाणउं, महातीरथगें अधिक वखाणु, भविअण मन आधारो, विषम नदी विषमा आघाट, विषमा पर्वत विषमी वाट, विषमाभरण सम्भारो, समुद्रतीरि जातां उल्हास, धामिणि कामिणि खेलई रास, भास गाइं गुणसार कहि नाचई कहि गाई वाइं, इसी परि प्रभु मारगि जाइं, माइं हरख न अङ्गे, दन्तउ० रातउ वाहिणि बइसी, तत खिणि आविउ गामि अगासी, भवियण नयण सुरङ्गे, युगादीस नयणे जव दीठउ, दुकय कम्मसम्भव तव नीठिउ, ऊबीठउ११ संसारो, सेत१२ वानि लेपमय मूरति, जिणि दीठई भाजइ मन आरति, वारइ ति विसमीवार, तउ मझ मन उल्हसिउं आणन्दिइं, भावपूरित भाव सुनिअ छन्दि, वन्दिसु प्रभुपयकमलो, भले फूलि आदीसर पूजइं, सयल मनोवाञ्छित तीहं१३ पूजई, । कीजइ मणूभव सफलो, रास-भास-लकुटारसि१४-गीति, नादभेदि पूजई ईणि रीतिइं प्रीतिं धरी उछाहो, कामिततीरथ जीवितसामी, वडइं पुण्य प्रभु दरिसण पामी, धामी१५ ध्याउ नाहो, सिद्धिरमणि मुगताफलहारो, दुखदावानलजलदो सारो, धारो सुहसम्भारो, माय-ताय तूं गुरु आधारो, राखि१६ राखि प्रभु एह सम्भारो, तारि तारिजि अमारो,

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7