Book Title: Sinhavlokano
Author(s): M A Dhaky
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 5
________________ .. अनुसंधान-१७ • 164 (६) उपर्युक्त अंकमां (पृ. ४०-४१ पर) मुनिश्री भुवनचंद्रजीए "शत्रुजयमंडन ऋषभदेव-स्तुति" प्रकाशित करी छे, जे रचना तीर्थनायक संबंधमां एक विशेष अने पश्चात्कालीन होवा छतां कामनी कही शकाय तेवी, उपलब्धि छे. ३४मां पद्यमां का नाम 'विजयतिलक' आप्यु होवा छतां तेमणे 'जैन गूर्जर कविओ' तेम ज 'गुजराती साहित्य कोश'ना आधारे तेने तपागच्छीय विजयदानसूरिशिष्य 'वासणा'नी कृति होवानुं कहेलं; पण 'अंक ६' (पृ. . ११४) पर " 'शजय-मंडन ऋषभदेव-स्तुति'नी प्राप्त वधु हस्तप्रतो" अंतर्गत आगळना सांप्रतकालीन लेखकोए करेली भूल, तेनी टीकाना आरंभना उल्लेख अन्वये, मुनिश्रीए सुधारी लीधी छे, ते योग्य थयुं छे. प्रस्तुत विजयतिलक सूरि तपागच्छना ज हता अने तेमनो सत्ता समय सं. १६७३-१६७६ (ईस्वी १६१७-१६२०) होवा- मो.द.देशाईए जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास अंतर्गत नोंध्युं छे. (७) अनुसंधानना पांचमा अंकमां ज मुनिमहोदय श्री रत्नकीर्तिविजयजी द्वारा बे सरस्वती-स्तोत्र प्रकाशित थयां छे. जेमांनुं प्रथम तो साराभाई नवाब द्वारा 'महाप्रभाविक नवस्मरण' (अमदावाद १९३७)मां प्रगट थई चूक्युं छे. तेना कर्ता छे भद्रकीर्ति अपरनाम बप्पभट्टिसूरि (कविकर्मकाल प्रायः ईस्वी ७७०-८३९).. श्रीलक्ष्मण भोजके पण एमणे ए संबंधमां मुनिजीनुं ध्यान दोरेलुं तेम मने वात करेली. ज्यारे बीजु श्रुतदेवतानुं सरस्वत्यष्टक नवीन जणाय छे. रचनामां गूंथायेला पञ्चत्रिंशद्गुणोपेता, संसृष्टिविगमध्रौव्यदर्शिका, ज्ञानदर्शनचारित्र-रत्नत्रितयदायिका, स्याद्वादिहृदयाम्भोजस्थायिनी, स्याद्वादवादिनी जेवां विशिष्ट सैद्धांतिक-दार्शनिक घचरकांओ उपरथी संग्रथननी आदत दिगंबर कर्तानी होवानो भास करावे छे. क्यांक क्यांक ब्राह्मणीय खयालातनो पण स्पर्श वरताय छे. जेमके मनुपूर्वस्वरूपिणी, भुवनेश्वरी, ब्रह्मबीजध्वनिमयी, हज्जाड्यान्धकारस्य हरणे तरणिप्रभा, इत्यादि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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