Book Title: Silakkhandhavagga Tika
Author(s): Vipassana Research Institute Igatpuri
Publisher: Vipassana Research Institute Igatpuri

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Page 444
________________ संदर्भ-सूची [59] 493 494 495 496 497 498 लोकथूपिकादिवसेनाति एत्थ अप्पाटिहीरकतन्ति लद्धासेवना उपरि फलसमापत्ति कथिता तेनाकारेन भूतुपादायसञ्जितं 334 335 335 336 337 337 wM 2m rm >> 499 वुच्चति, न 338 500 501 502 503 504 505 506 507 340 340 341 342 343 344 344 345 346 29 >> M945 508 346 सम्मुति पि सच्चसभावा अचिरपरिनिब्बुते तथेव वत्वा ति किच्छसिद्धिकं / तिण्णन्ति अयं अभिञा पन पावारिकम्बवने उत्तरिमनुस्सानं अत्थो / केन दुट्ठलोहितविमोचनस्स अनिय्यानिकभावदस्सनत्थन्ति ति एत्थ वसवत्तनं रूपगहणमुखेन निदस्सनं वा सालवतिका ति हि ईदिसेसु ठानेसु अनुद्देसिकेनेव ओसक्कनादिमुखेन उत्तरेनाति एत्थ निय्यानभावो, एस किराति आदि नामकं येवाति एसेव नयो, तत्यापि आवरन्तीति महापर्क ओतिण्णा नाम होतीति फरणप्पमाणवसेन 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 347 348 349 350 ~ ~ 351 351 352 ~ 519 354 354 355 356 357 520 521 522 523 524 525 358 ~ 358 359 526 360 ~ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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