Book Title: Siddh Hemhandranushasanam Part 03
Author(s): Hemchandracharya, Udaysuri, Vajrasenvijay, Ratnasenvijay
Publisher: Bherulal Kanaiyalal Religious Trust

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Page 550
________________ 116 ] श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासने कुशिकमिभ्यां च ।। ५०३ ।। कुशिकहृदिक--यः ।। ४५ ।। कुशेरुण्डक् ॥ १७८ ।। कुषेः कित् ।। ८० ॥ कुषेर्वा ।। १६४ ॥ कुष्युषिसृपिभ्यः कित् ।। ६१२ ।। कुसेरिदेदौ । २४१ ।। क र्चचूर्चादयः ॥ ११३ ।। क लिपिलिविशि--कित् ।। ४७६ ।। कृकडिकटिवटेरम्बः ।। ३२१ ।। कृकलेरम्भः ।। ३३६ ।। कृकस्थूराद्वचः क च ।। ७२८ ।। कृकुरिभ्यां पासः ॥ ५८३ ॥ कृगः कादिः ।। ८४६ ।। कृग: कित् ।। ३७६ ।। कृगोऽञ्जः ॥ १३६ ।। कृगो द्वे च ।। ७ ॥ कृगोमादिश्च ।। ४०७ ।। कृगो यङः ।। २०५॥ कृगो वा ।। २३ ।। कृजन्येधिपाभ्य इत्वः ।। ५२६ ।। कृतिपुतिलति--कित् ।। ७६ ।। कृतेः कृन्त् च ।। ४५८ ।। कृतेः क्रूकृच्छौ च ॥ ३६५ ॥ कृतेस्तर्क च ।। ७२३ ।। कृत्यशौभ्यां स्नक ।। २६४ ॥ कृधूतन्यृषिभ्यः कित् ॥ ४४० ।। कृपिक्षुधिपी--कित् ।। ८१५ ।। कृपिविषिवृ--णक ॥ १६१ ॥ कृपिशकिभ्यामटि: ॥ ६३० ॥ कृभूभ्यां कित् ॥ ६६० ।। कृलाभ्यां कित् ।। ७८० ।। कृवापाजि--उरण ।। १ ।। कृवृभृवनिभ्यः कित् ।। ५२८ ।। कृशक शाखेरोट: ।। १६० ।। कृशृ कुटिग्रहि-वा ।। ६१६ ।। कृशेरानुक ॥ ७६४ ॥ कृषिचमितनि-ऊः ॥ ८२६ ।। कृषेर्गुणवृद्धी च वा ।। ३१ ।। कृषेश्चादेः ।। ६४१ ।। कृसिकम्यमि-स्तुन् । ७७३ ।। कृहनेस्तुक नुको ।। ७६१ ॥ कृहृभूजीवि-एण : ।। ७७२ ।। कृ.गृ.पृ.-कित् ।। १८८ ।। कृ ग श द वग्-वरट् ।। ४४१ ॥ कृ ग्रऋतउर् च ॥ ७३४ ।। कृतृ भ्यामीषः ।। ५५३ ।। कृ पृ कटिपटि--रहः ।। ५८६ ॥ कृ वृकल्यलि-आतक ।। २०६ ।। कृ.शू गृ शलि--भः ।। ३२६ ।। कृ शृ पृ.पूग्--ईरः ।। ४१८ ।। कृ शु सृ-स्य ॥ २६८ ॥ केवयुभुरण्य्व--यः ।। ७४६ ।। करवभैरव--यः ।। ५१६ ॥ के शीशमिरमिभ्यः कुः ॥ ७४६ ॥ कोरचोरमोर--यः ।। ४३४ ।। कोरदूषाटरूष--दयः ।। ५६१ ॥ कोरन्धः ॥ २५७ ।।

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