Book Title: Shuddhatma shatak
Author(s): Todarmal Pandit
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 9
________________ शुद्धात्मशतक शुद्धात्मशतक (४५) सद्दो णाणं ण हवदि जम्हा सहो म याणदे किंचि । तम्हा अण्णं णाणं अण्णं सदं जिणा बेंति ।। शब्द ज्ञान नहीं है क्योंकि शब्द कुछ जाने नहीं। बस इसलिए ही शास्त्र अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें ।। शब्द ज्ञान नहीं है, क्योंकि शब्द कुछ जानते नहीं हैं; इसलिए शब्द अन्य हैं। और ज्ञान अन्य हैं - ऐसा जिनदेव कहते हैं। (४८) गंधो णाणं ण हवदि जम्हा गंधो ण याणदे किंचि । तम्हा अण्णं णाणं अण्णं गंधं जिणा बेंति ।। गंध ज्ञान नहीं है क्योंकि गंध कुछ जाने नहीं। बस इसलिए ही गंध अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें ।। गंध ज्ञान नहीं है, क्योंकि शास्त्र कुछ जानते नहीं हैं; इसलिए गंध अन्य हैं और ज्ञान अन्य हैं; ऐसा जिनदेव कहते हैं। रूवं णाणं ण हवदि जम्हा रूवं ण याणदे किंचि । तम्हा अण्णं णाणं अण्णं रूवं जिणा बेंति ।। रूप ज्ञान नहीं है क्योंकि रूप कुछ जाने नहीं। बस इसलिए ही रूप अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें।। रूप ज्ञान नहीं है, क्योंकि रूप कुछ जानता नहीं हैं; इसलिए रूप अन्य हैं और ज्ञान अन्य हैं; ऐसा जिनदेव कहते हैं। (४९) ण रसो दु हवदि णाणं जम्हा दु रसो ण याणदे किंचि । तम्हा अण्णं णाणं रसं च अण्णं जिणा बेंति ।। रस नहीं है, ज्ञान क्योंकि कुछ भी रस जाने नहीं। बस इसलिए ही अन्य रस अरु ज्ञान अन्य श्रमण कहें।। रस ज्ञान नहीं है, क्योंकि रस कुछ जानता नहीं हैं; इसलिए रस अन्य हैं और ज्ञान अन्य हैं; ऐसा जिनदेव कहते हैं। (४७) वण्णो णाणं ण हवदि जम्हा वण्णो ण याणदे किंचि । तम्हा अण्णं णाणं अण्णं वण्णं जिणा बेंति ।। वर्ण ज्ञान नहीं है क्योंकि वर्ण कुछ जाने नहीं। बस इसलिए ही वर्ण अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें ।। वर्ण ज्ञान नहीं है, क्योंकि वर्ण कुछ जानता नहीं हैं; इसलिए शास्त्र अन्य हैं और ज्ञान अन्य हैं; ऐसा जिनदेव कहते हैं। (५०) फासो ण हवदि णाणं जम्हा फासो ण याणदे किंचि । तम्हा अण्णं णाणं अण्णं फासं जिणा ति ।। स्पर्श ज्ञान नहीं है क्योंकि स्पर्श कुछ जाने नहीं। बस इसलिए स्पर्श अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें ।। स्पर्श ज्ञान नहीं है, क्योंकि स्पर्श कुछ जानता नहीं हैं; इसलिए स्पर्श अन्य हैं और ज्ञान अन्य हैं; ऐसा जिनदेव कहते हैं। ४६. समयसार गाथा ३९२ । ४९.समयसार गाथा ३९५ ४५.समयसार गाथा ३२९ ४७.समयसार गाथा ३९३ ४८. समयसार गाथा ३९४ ५०.समयसार गाथा ३९६

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