Book Title: Shuddhatma shatak
Author(s): Todarmal Pandit
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ शुद्धात्मशतक शुद्धात्मशतक (७५) जो सुत्तो ववहारे सो जोई जग्गए सकज्जम्भि । जो जग्गदि ववहारे सो सुत्तो अप्पणो कज्जे ।। ना घट करे ना पट करे ना अन्य द्रव्यों को करे । कर्ता कहा तत्रूपपरिणत योग अर उपयोग का ।। जीव घट को नहीं करता, पट को नहीं करता, शेष अन्य द्रव्यों को भी नहीं करता; परन्तु जीव के योग और उपयोग अवश्य घटादिक की उत्पत्ति में निमित्त है; उन योग और उपयोग का कर्ता जीव होता है। (७८) जीवो ण करेदि घडं व पडं णेव सेसगे दव्वे । जोगुवओगा उप्पादगा य तेसिं हवदि कत्ता ।। ना घट करे ना पट करे ना अन्य द्रव्यों को करे । कर्ता कहा तत्रूपपरिणत योग अर उपयोग का ।। जीव घट को नहीं करता, पट को नहीं करता, शेष अन्य द्रव्यों को भी नहीं करता; परन्तु जीव के योग और उपयोग अवश्य घटादिक की उत्पत्ति में निमित्त है; उन योग और उपयोग का कर्ता जीव होता है। जे पोग्गलदव्वाणं परिणामा होंति णाणआवरणा । ण करेदि ताणि आदा जो जाणदि सो हवदि णाणी ।। ज्ञानावरण आदिक जु पुद्गल द्रव्य के परिणाम हैं। उनको करे ना आतमा जो जानते वे ज्ञानि हैं।। ज्ञानावरणादि कर्म जो कि पुद्गल द्रव्य के परिणाम हैं; उन्हें जो आत्मा नहीं करता है, परन्तु जानता है, वह आत्मा ज्ञानी है। ववहारेण दु आदा करेदि घडपडरधाणि दव्वाणि । करणाणि य कम्माणि य णोकम्माणीह विविहाणि ।। व्यवहार से यह आत्मा घट पट रथादिक द्रव्य का। इन्द्रियों का कर्म का नोकर्म का कर्त्ता कहा ।। व्यवहारनय से यह आत्मा घट-पट-रथ आदि वस्तुओं को, इन्द्रियों को, अनेक प्रकार के क्रोधादि द्रव्यकर्मों को और शरीरादि नोकर्मों को करता है। (७७) जदि सो परदव्वाणि य करेज्ज णियमेण तम्मओ होज । जम्हा ण तम्मओ तेण सो ण तेसिं हवदि कत्ता ।। परद्रव्यमय हो जाय यदि परद्रव्य में कुछ भी करें। परद्रव्यमय होता नहीं बस इसलिए कर्त्ता नहीं ।। यदि आत्मा परद्रव्यों को करे तो नियम से तन्मय अर्थात् परद्रव्यमय हो जावे, किन्तु आत्मा तन्मय नहीं है, परद्रव्यमय नहीं है; अत: वह उनका कर्ता भी नहीं है। ७५. अष्टपाहुड : मोक्षपाहुड, गाथा ३१ ७६. समयसार गाथा ९८ ७७.समयसार गाथा ९९ (८०) जं भावं सुहमसुहं करेदि आदा स तस्स खलु कत्ता। तं तस्स होदि कम्मं सो तस्स दु वेदगो अप्पा ।। निजकृत शुभाशुभ का कर्ता कहा है आतमा । वे भाव उसके कर्म हैं वेदक है उनका आतमा ।। आत्मा जिन शुभाशुभ भावों को करता है, वह उन शुभाशुभ भावों का कर्ता होता है और वे शुभाशुभ भाव उसके कर्म होते हैं। वह आत्मा उन भावों का भोक्ता भी होता है। ७९.समयसार गाथा १०१ ७८. समयसार गाथा १०० ८०. समयसार गाथा १०२

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18