Book Title: Shrutgyan ki Prapti ka Mul Upay Guru ki Upasana Author(s): Neha Choradiya Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf View full book textPage 5
________________ | 10 जनवरी 2011 || जिनवाणी के लिए निकल पड़े। सावधान, गुरुतत्त्व-विनिश्चय की यह पंक्ति पढ़ लो-‘कृतपापानुबन्धहरत्वेन गुरुरेवाश्रयणीयः / जन्म-जन्मान्तर के किए हुए पाप कर्मों के अनुबंध को तोड़ने की इच्छा है तो गुरुदेव की शरण में गए बिना दूसरा कोई विकल्प ही नहीं है / पढ़िए पंचसूत्र की यह पंक्ति-'अओ चेव परमगुरुसंजोगो' गुरु के द्वारा परमगुरु की प्राप्ति होती है। चित्र स्पष्ट है विद्वत्ता नहीं पर महानता, ख्याति नहीं पर शुद्धि, समृद्धि नहीं पर सद्गुण, सद्गति नहीं पर परमगति, सफलता नहीं पर सरसता, जानकारी नहीं पर सम्यग्ज्ञान / इन सभी का एक ही उपाय है-'गुरुदेव के चरणों की शरणा' ('मुनि तुं जागृत रहेजे' पुस्तक के अंश का हिन्दी अनुवाद) -आर. सी. बाफना सदन, 9 ए विद्या नगर, आकाशवाणी चौक, जलगांव-425001 (महा.) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 3 4 5