Book Title: Shrimad Bhagdwadgita ke Vishwarup Darshan ka Jain Darshanik Drushti se Mulyankan
Author(s): Nalini Joshi
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 16
________________ अनुसन्धान ३६ संदर्भ महाभारत भीष्मपर्व अध्याय क्र. २५ से ४२ गीता अध्याय क्र. २ गीता अध्याय क्र. ४, ६, ७, ९, १०, १३, १४, १५, १६. गीता अध्याय क्र. ३, ५, ८, ११, १२, १७, १८ गीता १०.४१ गीता ११.४ सातवळेकर, गीता अध्याय क्र. ११ व्याख्या आचारांग १५. ३९(७७३), स्थानांग - ९.६२ गीता ११.७ १०. एवमक्खंति तिलोगदंसी, आचारांग १५.४०; सूत्रकृतांग १.१४.१६ ११. तत्त्वार्थसूत्र २.४७ १२. गीता ११.३८ १३. गीता ११.८ १४. आचारांग २.१५.१; महावीरचरियं, (गुणचंद्र पृ० ९) १५. तत्त्वार्थसूत्र १.२३ १६. तत्त्वार्थसूत्र १.३२ १७. गीता ९.१० १८. गीता ११.३४ १९. गीता १८.१४ २०. तत्त्वार्थसूत्र ५.२२ २१. तत्त्वार्थसूत्र ८.११ २२. आचारांग १.१.७.१७६; आचारांग १.२.३.६३, तत्त्वार्थसूत्र ७.८ २३. कल्पसूत्र (ललवाणी) सूत्र ३२ २४. कल्पसूत्र (ललवाणी) सूत्र ३० महावीरचरियं पृ. ११८ २६. समवायांग ३४ २७. महावीरचरियं पृ० २७९ २८. आवश्यक नियुक्ति ६०० २९. आवश्यक नियुक्ति ६०१ ३०. स्थानांग ८.११४ ३१. पंचास्तिकाय प्रस्तावना, प्रो. ए. चक्रवर्ति नयनार, पृ० ८ २५. महावीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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