Book Title: Shri 108 Navkar
Author(s): Abhayshekharsuri
Publisher: Arham Parivar Trust

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Page 7
________________ ॥ पंचपरमेष्ठिभ्यो नमः ।। मला नवकार.. बनतो आ तारकमंत्र पण संसार जेटलो ज शाश्वत छे. नथी आरंभ नथी अंत! असंख्य देवोथी अधिष्ठित अने ६८ तीर्थरूप ६८ अक्षरोथी मंडित नवकारमंत्रनो 'न' पण अनंत पुण्यराशि भेगी थाय, तो ज सांभळवा-बोलवा मळे. अने ओ 'न' बोलवामात्रथी ७ सागरोपम जेटला नरकना दुःख टळे. नव लाख नवकारनो जाप गणनार नरके न जाय, ओ उक्ति नवकारमंत्रनी महत्ता सिद्ध करे छे. सर्वत्र, सर्वदा जाप-रटन, ध्यानयोग्य आ महामंत्रनो जाप आ पुस्तिकाना प्रत्येक पृष्ठपर रहेला नवकारने गणता-गणता सहज थई जाय ओ शुभेच्छा छे. आ प्रकाशनमां जिनाज्ञाविरुद्ध जे कांई होय, ते माटे मिच्छामि दुक्कडम्. Jain Education Interraticartel & Persona l itzatentola.

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