Book Title: Shravan belgola ke Abhilekho me Dan Parampara Author(s): Jagbir Kaushik Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf View full book textPage 6
________________ थी। चट्टिकब्बे ने अपने पति की निषद्या का निर्माण करवाया था।' सिरियम्बे व नागियक्क ने सिङ्गिमय के समाधिमरण करने पर निषद्या का निर्माण करवाया / महानवमी मण्डप में उत्कीर्ण अभिलेख के अनुसार शुभचन्द्र मुनि का स्वर्गवास होने पर उनके शिष्य पद्मनन्दि पण्डितदेव और माधवचन्द्र ने उनकी निषद्या निर्मित करवाई। लक्खनन्दि, माधवेन्द्र और त्रिभुवनयल ने भी अपने गुरु के स्मारक रूप में निषद्या की प्रतिष्ठापना करवाई थी। मुनि समाज के अतिरिक्त राजा या उनके मन्त्री भी अपने गुरु आदि की स्मृति में निषद्या का निर्माण करवाते थे। पोयसल महाराज गंगनरेश विष्णुवर्द्धन ने अपने गुरु शुभचन्द्र देव की निषद्या निर्मित करवाई थी।" मन्त्री नागदेव ने भी अपने गुरु श्री नयनकीर्ति योगीन्द्र की निषद्या निर्मित करवाई। मेघचन्द्र विद्य के प्रमुख शिष्य प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेव ने महाप्रधान दण्डनायक गंगराज से अपने गुरु की निषद्या का निर्माण करवाया था। इनके अतिरिक्त अन्य अभिलेखों में भी निषद्या निर्माण के उल्लेख मिलते हैं / (ix) अन्य वान–पूर्व वणित दानों के अतिरिक्त परकोटा निर्माण, तालाब निर्माण, पद्रशाला निर्माण, चैत्यालय निर्माण तथा स्तम्भ प्रतिष्ठा जैसे अन्य दानों के उल्लेख भी आलोच्य अभिलेखों में उपलब्ध होते हैं। गङ्गराज ने गनवाड़ि में प्रतिष्ठापित गोम्मटेश्वर की प्रतिमा का परकोटा तथा अनेक जैन बस्तियों का जीर्णोद्धार करवाया। गोम्मटेश्वर द्वार की दायीं ओर एक पाषाण खण्ड पर उत्कीर्ण एक लेख में वर्णन आता है कि बालचन्द्र ने अपने गुरु के स्मारक स्वरूप अनेक शासन रचे तथा तालाब आदि का निर्माण करवाया। बल्लण के संन्यास विधि से शरीर त्याग करने पर उसकी माता व बहन ने उसकी स्मृति में एक पट्टशाला (वाचनालय) स्थापित करवाई। इनके अतिरिक्त चैत्यालय निर्माण और स्तम्भ प्रतिष्ठापना के वर्णन भी श्रवणबेलगोला के अभिलेखों में मिलते हैं। इस प्रकार निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि आलोच्यकाल में दान परम्परा का अत्यन्त महत्त्व था / दान प्रायः अपने पूर्वजों की स्मृति में तथा जन साधारण के उपकार के लिए दिया जाता था। उस समय बस्ति निर्माण, मन्दिर निर्माण तथा जीर्णोद्धार, धन दान, मूर्ति दान, निषद्या निर्माण, तालाब, पट्टशाला, चैत्यालय, परकोटा निर्माण आदि के अतिरिक्त निर्माण व जीर्णोद्धार सम्बन्धी कार्यों के लिए ग्राम व भूमि का दान दिया जाता था। ग्राम व भूमि से प्राप्त होने वाली आय से आहार आदि की व्यवस्था भी की जाती थी। 2. ०शि०सं० भाग एक, सं० स०६८, -वही-ले० स०५२. -वही-ले०स०४१. वही-ले० स० 39. ले० स०४३. - ले० स० 42. - ले० स० 47 वही-ले० स.४८, 40, 41. -ले० सं०५१,७५, 90. -ले. स... -वही-ले०सं० 51. -वहौ-ले० स०४३०. -वही-ले. स. 46. 11. 12. 13. गोम्मटेश दिग्दर्शन 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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