Book Title: Shramanachar Parichayak Katipay Paribhashik Shabda Author(s): Rameshmuni Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf View full book textPage 7
________________ 208 208 | जिनवाणी | 10 जनवरी 2011 || गम्भीरता किंवा अन्तःस्थल को समझने के लिये भी तत्सन्दर्भित शब्दावलि का प्रयोग और प्रयोजन जानना अनिवार्य है। इन शब्दों का अभिधा, लक्षणा एवं व्यञ्जना के माध्यम से वैज्ञानिक-विवेचन भी किया जा सकता है। जिससे शब्दों का हार्द सहस्र किरण दिनकर के स्वर्णिम-प्रकाश के सदृश अतिशय रूपसे परिस्पष्ट होगा। सन्दर्भ :1. श्रमंनयतीति श्रमणः। 2. नास्ति तिथिर्यस्यसअतिथिः। . 3. स्वभावे चरणं-रमणं तन्मयत्वंवाचारित्रम् / सव्वंसावज्जंजोगंपच्चक्खामि-सर्वंसावा योगं प्रत्याख्यामि। उपस्थापयितुंयोग्यं उपस्थापनीयम् / अवश्यं कर्तव्यमित्यावश्यकम्। आ-समन्ताद्गुणानांवश्यमात्मानं करोतीत्यावश्यकम् / आ-समन्तादवश्या-वशगताभवन्ति इन्द्रिय-कषाययादि-भावशत्रवो यस्मात्तदावश्यकम्। 9. आचरन्ति इति आचार्याः। 10. आमर्यादयाचरति गच्छतीत्याचार्यः। 11. क-स्थानाङ्गसूत्र-4.3.323 ख-बृहत्कल्पसूत्र, उद्देशक-41 12. क-उपसमीप अधीते यस्मादसौ उपाध्यायः। ख-स्वयंशास्त्राण्यधीते अन्यान् अध्यापयति इति उपाध्यायः।। 13. वालयंपंचविहं पण्णत्त ।तंजहा- उण्णिए, उट्टिए, मियलोलिए, कोतवे, किट्टिसे / अनुयोगद्वार सूत्र, सूत्रांक-38 / 14. ऊर्णस्येदमौर्णिकम्। 15. क-उत्तराध्ययन सूत्र- अध्ययन-26, गाथा-2,3,41 ख-स्थानांगसूत्र-स्थान-10, सूत्र-102 / ग- अनुयोगद्वार सूत्र-आनुपूर्वीप्रकरण। क-संलिख्यतेऽनया शरीर कषायादि इति संलेखना।-स्थानाङ्गसूत्र-स्थान 2, उद्देशक-2वृत्ति। ख- ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-1.1वृत्ति / ग-तत्त्वार्थवृत्ति-7,22भाष्य, पृष्ठ-2461 घ-प्रवचनसारोद्धार, 1351 ङ-चारित्रसार-221 17. उत्तराध्ययन सूत्र- अध्ययन-24,गाथा-2 18. स्थानाङ्गसूत्र-स्थान-10,समिति पद 19. अनुयोगद्वार सूत्र-आवश्यक प्रकरण-29 स्थानाङ्गसूत्र-स्थान-10, प्रायश्चित्त पद 21. सारय सलिलं वसुद्धहियए-प्रश्नव्याकरण सूत्र, संवर, सूत्र-5 22. उत्तराध्ययन सूत्र-अध्ययन-4, गाथा-6 23. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-29, प्रश्नांक-12 16. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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