Book Title: Shraman Sanskruti me Nari Ek Mulyankan Author(s): Rameshmuni Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf View full book textPage 7
________________ महासती सुभद्रा -साध्वीरत्न सुभद्रा का समूचा जीवन धार्मिक दृढ़ता का जीवन्त प्रतीक था। विजय सत्य की होती है। सुभद्रा का जीवन इसी विजय का उद्घोषक है। सुभद्रा जिनदास की यशस्विनी पुत्री थी। जिनदास वसन्तपुर का प्रतिष्ठित श्रेष्ठी था। चम्पानगरी में एक घनाढ्य युवक निवास करता था। जिस का नाम बुद्धदास था। सुभद्रा का पाणिग्रहण बुद्धदास के साथ हुआ। सुभद्रा ने बुद्धदास के समूचे परिवार को “नमो अरिहन्ताणं" का मंगलमय महामन्त्र दिया। उक्त महामन्त्र की शीतल लहरों से समूचा परिवार प्रक्षालित हो गया। - महासती चन्दनवाला-साध्वीरल श्री चन्दनबाला प्रभु महावीर की प्रथम शिष्या थी। श्रमणी संघ की प्रवर्तिनी एवं धर्मशासिका थी। जिस के नेतत्व में छत्तीस हजार साध्वियों ने अपने आप को मोक्ष-मार्ग पर गतिशील रखा। महाराजा चेटक की राजकुमारी धारिणी चम्पानरेश दधिवाहन की धर्मनिष्ठा रानी थी। रानी धारिणी त्रिशला की बहन अर्थात् भगवान् महावीर की मौसी थी। चम्पानगरी का यह राज दम्पती उज्ज्वल कीर्ति के कारण विश्रुत है। ये राजरानी एक अतीव सलौनी राजकुमारी के माता-पिता थे। जिस का नाम था -वसुमती। यही वसुमती चन्दना या चन्दनबाला नाम से विश्रुत हुई। ___ साध्वीरत्न चन्दनबाला का समूचा जीवन अद्भुत गरिमाओं का मूल्यवान् कोष था। वह विशिष्ट साध्वी प्रतिकूल-परिवेश में भी गम्भीर और सहिष्णु बनी रही। धर्मपथ से विचलित न हुई। मूला और शतानीक जैसे क्रूर कर्मियों का भी उस ने माधुर्यपूर्ण व्यहार से हृदय-परिवर्तन किया। कौशम्बी एवं चम्पा के मध्य भीषण शत्रुता को भी उसने सदा के लिये समाप्त कर दिया। उसने ऐसी विलक्षण विशेषताओं के आधार पर साध्वियों की उज्ज्वल परम्परा में गौरव पूर्ण स्थान प्राप्त किया। सारपूर्ण भाषा में यही कहा जा सकता है कि श्रमण संस्कृति में नारी का जो मूल्यांकन हुआ है, वह यथार्थपूर्ण है। नारी के व्यापक व्यक्तित्व को सर्वांगीण रूप से चित्रित करने का उपक्रम अनन्त असीम आकाश को अपने लघीयान् बाहुपाश में परिबद्ध कर लेने के समान हास्यास्पद प्रयास है। और मेरा यह लेखन कार्य यथार्थ अर्थ में अगाध-अपार महासागर की अपरिमित जलराशि को एक गागर में भर लेने के समान है, तथापि इस दिशा में अत्यल्प सा प्रयत्न किया। यथार्थ से आदर्श की ओर ऐसे में यदि यह लघु काय निबन्ध-बिन्दु पाथेय स्वरूप सिद्ध हुआ तो मैं अपने श्रम को सार्थक समझूगा। (26) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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